भारतीय रेशम का जादू: परंपरा, रोजगार और विकास की मजबूत डोरी

रेशम सिर्फ एक कपड़ा नहीं, बल्कि भारत की परंपरा, कला और सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक है। कांचीपुरम, बनारस और भागलपुर जैसे शहरों में बनी रेशमी साड़ियाँ केवल सुंदरता ही नहीं, बल्कि हमारी विरासत की कहानी भी कहती हैं। यह कला पीढ़ियों से चली आ रही है, जिसमें कारीगर अपने करघों से रेशम को जीवंत बनाते हैं।
रेशम कैसे बनता है?
रेशम, एक कीड़े (रेशम के कीड़े) से बनता है जो शहतूत, ओक, अरंडी और अर्जुन के पत्ते खाते हैं। ये कीड़े कोकून बनाते हैं, जिन्हें उबालकर रेशम के रेशे निकाले जाते हैं। इन रेशों को धागों में बदला जाता है और फिर बुनकर सुंदर कपड़ों में बदलते हैं।
भारत में रेशम का स्थान
- भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा रेशम उत्पादक और सबसे बड़ा उपभोक्ता देश है।
- शहतूत रेशम सबसे ज्यादा लोकप्रिय है और देश के कुल उत्पादन का 92% हिस्सा यही बनाता है।
- गैर-शहतूत रेशम (वान्या रेशम) भी झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा और पूर्वोत्तर राज्यों में बड़ी मात्रा में बनता है।
रेशम उत्पादन के आंकड़े
वर्ष | कुल कच्चा रेशम उत्पादन (मीट्रिक टन) | शहतूत क्षेत्रफल (हेक्टेयर) | रेशम निर्यात (₹ करोड़) |
---|---|---|---|
2017-18 | 31,906 | 2,23,926 | 1,649.48 |
2023-24 | 38,913 | 2,63,352 | 2,027.56 |
रेशम अपशिष्ट का उपयोग
रेशम उत्पादन में बचे हुए रेशे (जैसे टूटे कोकून) को भी फेंका नहीं जाता। इनका उपयोग कम गुणवत्ता वाले रेशमी वस्त्र बनाने या रीसाइक्लिंग में किया जाता है, जिससे संसाधनों की बर्बादी नहीं होती।
सरकारी योजनाएं: किसानों और बुनकरों की ताकत
भारत सरकार ने रेशम उत्पादन को बढ़ावा देने और गरीब ग्रामीणों को रोज़गार देने के लिए कई योजनाएं चलाई हैं:
- रेशम समग्र योजना
- अनुसंधान, प्रशिक्षण और टेक्नोलॉजी का प्रचार
- गुणवत्तापूर्ण बीज और धागा उत्पादन
- मार्केटिंग और निर्यात में सहयोग
- रेशम समग्र-2 (2021-2026)
- ₹4,679.85 करोड़ का बजट
- 78,000 से अधिक लोग लाभान्वित
- आंध्र प्रदेश व तेलंगाना को विशेष सहायता
- कच्चा माल आपूर्ति योजना (RMSS)
- हथकरघा बुनकरों को रियायती दरों पर धागा
- राष्ट्रीय हथकरघा विकास कार्यक्रम (NHDP)
- डिजाइन, कच्चा माल, तकनीक और विपणन सहायता
- समर्थ योजना
- वस्त्र क्षेत्र में कौशल विकास
- 3 लाख लोगों को प्रशिक्षण
रेशम भारत की परंपरा और आत्मनिर्भरता का प्रतीक है। सरकार की योजनाओं और कारीगरों की मेहनत से भारत न केवल रेशम उत्पादन में आत्मनिर्भर बन रहा है, बल्कि वैश्विक मंच पर भी अपनी पहचान बना रहा है। यदि हम इस कला को आधुनिक तकनीकों और अच्छे बाजार से जोड़ें, तो रेशम भारत के ग्रामीण जीवन को बदलने की ताकत रखता है।