ला नीना और जलवायु परिवर्तन: वैश्विक तापमान में ऐतिहासिक वृद्धि

जलवायु के पैटर्न पर ला नीना का प्रभाव
नई दिल्ली, 3 अप्रैल 2025: कोपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, जनवरी 2025 के दौरान वैश्विक सतही वायु तापमान अपने अब तक के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया। रिपोर्ट बताती है कि ला नीना की स्थिति के बावजूद, वैश्विक तापमान 1991-2020 के औसत की तुलना में 0.79 डिग्री सेल्सियस अधिक दर्ज किया गया। वहीं, भारतीय उपमहाद्वीप में यह 1901 के बाद दूसरा सबसे गर्म जनवरी साबित हुआ, जहाँ सामान्य से 0.98 डिग्री सेल्सियस अधिक तापमान दर्ज किया गया।
ग्लोबल वार्मिंग: मुख्य कारण
विशेषज्ञों का मानना है कि यह तापमान वृद्धि सीधे तौर पर ग्लोबल वार्मिंग से जुड़ी हुई है। जीवाश्म ईंधनों के अत्यधिक दहन और औद्योगिक गतिविधियों के कारण वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों का स्तर लगातार बढ़ रहा है। कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) और अन्य ग्रीनहाउस गैसें सूर्य की ऊष्मा को अवरुद्ध कर पृथ्वी के तापमान को बढ़ा रही हैं, जिससे जलवायु परिवर्तन की गति तेज हो रही है।
ला नीना और भारतीय मानसून पर संभावित प्रभाव
आमतौर पर, ला नीना की स्थिति भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून के लिए अनुकूल मानी जाती है और इससे औसत से अधिक वर्षा होती है, जो कृषि के लिए फायदेमंद होती है। हालांकि, इस वर्ष ENSO (एल नीनो-दक्षिणी दोलन) की तटस्थ स्थिति बनी हुई है, जिसमें पूर्वी और सुदूर पश्चिमी प्रशांत महासागर में समुद्र सतह का तापमान (SST) औसत से अधिक, जबकि मध्य प्रशांत में औसत से कम है।
भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) और मानसून मिशन क्लाइमेट फोरकास्ट सिस्टम (MMCFS) के पूर्वानुमानों के अनुसार, 2025 के दक्षिण-पश्चिम मानसून के दौरान तटस्थ ENSO स्थिति बनी रह सकती है। इसका मतलब है कि भारतीय मानसून पर ला नीना का कोई बड़ा प्रभाव देखने को नहीं मिलेगा। IMD अप्रैल के मध्य तक मानसून के विस्तृत पूर्वानुमान की पहली रिपोर्ट जारी करेगा।
जलवायु अध्ययन और भविष्य की रणनीतियाँ
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (MoES) के तहत विभिन्न वैज्ञानिक संगठन भारतीय जलवायु और मानसून पर पड़ने वाले प्रभावों का गहराई से अध्ययन कर रहे हैं। IMD प्रशांत और हिंद महासागर के समुद्र सतह तापमान (SST) में बदलावों की लगातार निगरानी कर रहा है और ENSO/हिंद महासागर डाइपोल (IOD) पर मासिक बुलेटिन प्रकाशित करता है।
इसके अलावा, IMD विभिन्न क्षेत्रों के लिए मासिक और मौसमी पूर्वानुमान जारी करता है ताकि ला नीना और अल नीनो जैसे जलवायु परिवर्तनों के संभावित प्रभावों का सटीक आकलन किया जा सके। इन पूर्वानुमानों के आधार पर किसानों को कृषि संबंधी सलाह दी जाती है, जिससे वे फसल चयन, सिंचाई, कीट एवं रोग नियंत्रण और आपदा प्रबंधन से जुड़े निर्णय ले सकें।
सरकार की नीति और आगामी कदम
लोकसभा में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी तथा पृथ्वी विज्ञान राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. जितेंद्र सिंह ने अपने लिखित उत्तर में जानकारी दी कि सरकार जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए आवश्यक कदम उठा रही है। IMD और अन्य वैज्ञानिक संस्थान देश की जलवायु स्थितियों की सतत निगरानी कर रहे हैं और अनुसंधान को बढ़ावा दिया जा रहा है ताकि मौसम और जलवायु से जुड़ी चुनौतियों का प्रभावी समाधान निकाला जा सके।
आने वाले वर्षों में जलवायु परिवर्तन और ENSO के प्रभावों को बेहतर ढंग से समझने के लिए व्यापक अध्ययन की आवश्यकता होगी। भारत सरकार जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को कम करने और सतत विकास को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न योजनाओं और रणनीतियों पर कार्य कर रही है।