हाईवे कांड: जघन्य कांड के नौ साल बाद भी पिता के जख्म हरे

 हाईवे कांड: जघन्य कांड के नौ साल बाद भी पिता के जख्म हरे

बुलंदशहर। बुलंदशहर के नेशनल हाईवे-91 पर हुए जघन्य कांड के नौ साल बाद भी पीड़ित परिवार का जीवन पटरी पर नहीं लौट पाया है। वारदात के बाद तत्कालीन सरकार के मंत्रियों और अधिकारियों ने पीड़ित परिवार की चौखट तक दौड़ जरूर लगाई थी।

नौकरी, घर और बेहतर भविष्य के बड़े-बड़े वादे किए थे। दरिंदगी की शिकार हुई बेटी के पिता का दर्द है कि ये सब मीडिया में महज सुर्खियां बनकर रह गए। उनका कहना है कि गाजियाबाद में सरकार ने जो घर दिया, वह रहने लायक नहीं था।

नौकरी देने का वादा अब तक अधूरा है। बेटी बालिग हो गई, लेकिन उसे मिलने वाली मदद सरकारी फाइलों में दबकर रह गई। पढ़ाई में मदद का वादा भी पूरा नहीं हुआ।

प्रदेश सरकार से अपील… बेटी को तो दे दो नौकरी

पीड़ित पिता ने वर्तमान सरकार से अपील की है कि उनके परिवार को वह सम्मान और सुरक्षा दी जाए, जिसका वादा वर्षों पहले किया गया था। साथ ही उनकी बेटी को सरकारी नौकरी दी जाए, जिससे वह समाज के बीच सम्मान के साथ सिर उठाकर जी सके।

अधिकारियों ने ही दबा दी आवाज

उस वक्त के कद्दावर नेता आजम खां के इस कांड को राजनीतिक साजिश करार देने का जब पीड़ित पिता ने विरोध किया तो न्याय दिलाने का दावा करने वाले अधिकारी ही दुश्मन बन गए।

पिता का आरोप है कि तत्कालीन अधिकारियों ने उन्हें फटकार लगाई और चुप रहने की हिदायत दी। व्यवस्था का क्रूर चेहरा तब और साफ हुआ, जब पीड़ित परिवार को ही दोषी ठहराने की कोशिश की गई।

मिला डीआईजी दीदी का साथ :—

पीड़ित पिता का यह भी आरोप है कि घटना के बाद जब लहूलुहान हालत में परिवार कोतवाली पहुंचा तो थानेदार के शब्द मरहम लगाने के बजाय घावों को गहरा करने वाले थे। थानेदार ने कहा कि एफआईआर क्यों लिखवा रहे हो। बेवजह कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटोंगे।

हताशा के उस दौर में तत्कालीन डीआईजी मेरठ रेंज लक्ष्मी सिंह (वर्तमान में पुलिस कमिश्नर) उम्मीद बनकर सामने आईं। पीड़ित पिता ने बताया कि डीआईजी को दीदी कहकर पुकारा और उन्होंने सच में एक बहन का फर्ज निभाया। उनकी तत्परता से पुलिस प्रशासन हरकत में आया, वरना स्थानीय पुलिस मामले को रफा-दफा करने में लगी थी।

सांसद की सिफारिश पर भी दुत्कार

बेटी का भविष्य संवारने के लिए पिता ने हर संभव दरवाजा खटखटाया। सांसद डॉ. महेश शर्मा ने केंद्रीय स्कूल में दाखिले के लिए पत्र भी लिखा, लेकिन वहां भी निराशा हाथ लगी। स्कूल प्रशासन ने दुत्कार कर वापस भेज दिया। पिता सवाल पूछते हैं कि क्या बेटी को सम्मान से पढ़ने का भी हक नहीं है?

आज भी हरे हैं काली रात के जख्म

28 जुलाई 2016 को हुई घटना को याद कर वह कहते हैं कि उस दरिंदगी के जख्म आज भी हरे हैं। वह रात नहीं, काल थी। मेरी आंखों के सामने पत्नी और बेटी को दरिंदे घसीटकर ले गए। मैं बेबस था। गिड़गिड़ा रहा था कि उनको छोड़ दो या मुझे गोली मार दो। अपनों को बचाने के लिए हथियारों से लैस बदमाशों को ललकारा भी कि एक बार हाथ-पैर खोलकर देखो।

उन्होंने एक नहीं सुनी। जवाब में इतनी बेरहमी से पीटा कि मरणासन्न कर दिया। उस खौफनाक मंजर को याद कर आज भी उनकी आंखें डबडबा जाती हैं। शरीर में सिहरन पैदा हो जाती है। वह कहते हैं कि उस रात सिर्फ बेटी की अस्मत नहीं लुटी थी, बल्कि कानून-व्यवस्था का इकबाल भी तार-तार हुआ था।

पांचों दोषियों को आजीवन कारावास

बुलंदशहर में नेशनल हाईवे-91 पर नौ साल पहले कार सवार परिवार को बंधक बनाकर मां-बेटी के साथ सामूहिक दुष्कर्म व लूटपाट करने के पांच दोषियों को विशेष न्यायाधीश पॉक्सो एक्ट ओपी वर्मा के न्यायालय ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। प्रत्येक दोषी पर 1.81 लाख रुपये अर्थदंड भी लगाया गया है।

न्यायालय ने कहा कि सभी दोषी अंतिम सांस तक जेल में रहेंगे। साथ ही अर्थदंड की आधी राशि पीड़ित मां-बेटी को दी जाएगी।