केंद्र सरकार ने सिविल न्यूक्लियर कानून में बदलाव का प्रस्ताव लोकसभा में रखा
नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने लोकसभा में सिविल न्यूक्लियर कानून में बदलाव का प्रस्ताव रखा है। इसके जरिए सरकार अब परमाणु ऊर्जा पर सरकार का एकाधिकार खत्म करने की तैयारी में है। मौजूदा कानून को बदलने के लिए लाया गया विधेयक स्वीकार होता है तो आने वाले दिनों में भारत में निजी कंपनियां और यहां तक कि आम व्यक्ति भी परमाणु संयंत्र के निर्माण और इसके संचालन जैसी गतिविधियों में शामिल हो सकते हैं।
केंद्रीय विज्ञान-तकनीक मामलों के राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने लोकसभा में इससे जुड़ा विधेयक पेश किया। बुधवार को इस पर चर्चा शुरू हुई। बताया गया है कि इस विधेयक को कानून बनवाकर सरकार 2047 तक कुल 100 गीगावॉट परमाणु ऊर्जा पैदा करने के लक्ष्य को पूरा करने का प्रयास कर रही है।
ऐसे में यह जानना अहम है कि आखिर इस विधेयक में क्या प्रस्ताव हैं, जिन्हें लेकर देशभर में चर्चाएं जारी हैं? इससे परमाणु ऊर्जा के इस्तेमाल के नियम किस तरह बदल जाएंगे? अगर निजी और आम लोगों को परमाणु उपकरण के इस्तेमाल की इजाजत होगी तो इसकी सुरक्षा कैसे सुनिश्चित होगी? अगर ऐसे में कोई हादसा हो जाता है तो इससे कैसे निपटा जाएगा?
क्या हैं सिविल न्यूक्लियर कानून में बदलाव?
सिविल न्यूक्लियर कानून में बदलाव के लिए जो विधेयक लाया गया है, उसे सस्टेनेबल हार्नेसिंग एंड एडवांसमेंट ऑफ न्यूक्लियर एनर्जी फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया (SHANTI), 2025 नाम दिया गया है। इसके जरिए सरकार परमाणु ऊर्जा कानून (एटॉमिक एनर्जी एक्ट), 1962 और परमाणु क्षति के लिए नागरिक दायित्व अधिनियम, 2010 को वापस ले लेगी। मौजूदा समय में भारत में परमाणु पदार्थों, ऊर्जा और उपकरणों के इस्तेमाल को लेकर यही दोनों कानून दिशा-निर्देश तय करते हैं।
नए विधेयक में क्या?
शांति, 2025 विधेयक में परमाणु ऊर्जा के उत्पादन, इस्तेमाल और नियमन के लिए एक नया वैध ढांचा तैयार करने का प्रस्ताव है। इसके अलावा रेडिएशन के मानकों को लेकर भी इस विधेयक में कई नियम शामिल किए गए हैं। विधेयक में कहा गया है कि परमाणु ऊर्जा भारत की स्वच्छ ऊर्जा जरूरतों के लिए काफी अहम है। खासकर जैसे-जैसे ऊर्जा की मांग वाली तकनीक जैसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई), डाटा सेंटर्स और उत्पादन की मांग बढ़ती जा रही है।
