देश के नेशनल स्टेज पर अपनी जगह बना रहे माइनॉरिटी कारीगर

 देश के नेशनल स्टेज पर अपनी जगह बना रहे माइनॉरिटी कारीगर

नई दिल्ली। देश के नेशनल स्टेज पर माइनॉरिटी कारीगर अपनी जगह बना रहे हैं। इसका जीता जागता उदाहरण पिछले माह दिल्ली में लगा इंडिया इंटरनेशनल ट्रेड फेयर है। जहां पर देश के माइनॉरिटी समुदायों, खासकर मुसलमानों के हाथों में हैंडलूम और हैंडीक्राफ्ट की परंपराएं कितनी गहराई से ज़िंदा हैं, और हाल की सरकारी पहल पर देखने को मिली। ये बातें आज ‘माइनॉरिटी कारीगर और नेशनल स्टेज’ पर आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान माइनॉरिटी कारीगर विषय पर काम कर रहे डॉक्टर सविता पांडे ने कही।

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए सविता पांडे ने कहा कि इस बार ट्रेड फेयर में मुस्लिम कारीगरों की भारी संख्या। वे अपने स्टॉल के पीछे ऐसे खड़े थे जैसे वे बचपन से ही अपने हुनर के साथ जी रहे हों। कुछ जवान थे, कुछ बुज़ुर्ग, कई छोटे शहरों और गांवों से थे, लेकिन सभी में एक खास इज़्ज़त थी जो पूरी तरह से अपने हाथों से कुछ बनाने से आती है। उनकी मौजूदगी को और भी खास बनाने वाली बात यह थी कि उन्हें पता चला कि वे यहां कैसे आए। वेन्यू पर मौजूद अधिकारियों के मुताबिक, जम्मू और कश्मीर ट्रेड प्रमोशन ऑर्गनाइज़ेशन की रिक्वेस्ट पर कश्मीर के हैंडीक्राफ्ट्स और हैंडलूम्स डिपार्टमेंट ने एक ट्रांसपेरेंट ड्रॉ के ज़रिए 35 कारीगरों और बुनकरों की लिस्ट फाइनल की। यह कोई इनर-सर्कल सिलेक्शन नहीं था, न ही कोई सिंबॉलिक रिप्रेजेंटेशन था।

कारीगरों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि कुछ कारीगर ऐसे इलाकों से आते हैं जहां रोजी-रोटी मुश्किल है और मार्केट का अंदाज़ा नहीं लगाया जा सकता, नेशनल ट्रेड फेयर में खड़ा होना सिर्फ़ एक प्रोफेशनल मौका नहीं है। यह पहचान का पल है।

पश्मीना और कानी शॉल की रही अधिकतर डिमांड

पश्मीना और कानी शॉल जिनमें महीनों की मेहनत लगती है, सोज़नी और क्रूएल कढ़ाई जिसमें सदियों पुराना हुनर है, पेपर-मैशे आर्टवर्क जो बहुत बारीकी से पेंट किया गया है, यह सब हल्की पीली रोशनी में दिखाया गया था, जिसने पूरे भारत और विदेश से खरीदारों को अपनी ओर खींचा। यह देखकर बहुत अच्छा लगा कि विज़िटर सवाल पूछ रहे थे, टेक्सचर की तारीफ़ कर रहे थे, और हर पीस के पीछे की मेहनत को समझ रहे थे।

इन राज्यों के मुस्लिम कारीगरों ने बनाई पहचान

उत्तर प्रदेश, पंजाब, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश और पश्चिम बंगाल के मुस्लिम कारीगर चुपचाप मज़बूती से खड़े थे, हर कोई अपनी क्षेत्रीय पहचान लेकर आया था जिसे उन्होंने बनाया था। लोकल मिट्टी और परंपरा। पीतल के बर्तन और चिकनकारी से लेकर बिदरी वर्क, लकड़ी के क्राफ्ट, इकत बुनाई और मेटल की बारीक नक्काशी तक, उनके स्टॉल दिखाते थे कि मुस्लिम कारीगरी भारत के कल्चरल भूगोल में कितनी गहराई से जुड़ी हुई है।

भारत की विरासत का जीता-जागता नक्शा :—

अलग-अलग लहजे, अलग-अलग कल्चर, अलग-अलग इतिहास, फिर भी हुनर, सब्र और विरासत की एक जैसी भाषा। इससे ट्रेड फेयर बाज़ार जैसा कम और भारत की कई तरह की विरासत का जीता-जागता नक्शा ज़्यादा लगा, जहाँ मुस्लिम कारीगर किसी एक इलाके या एक कहानी तक सीमित नहीं थे, बल्कि अपनी पूरी विविधता के साथ देश की कहानी का हिस्सा थे। मुस्लिम कलाकारी मेरी आँखों के सामने फैली, बहुत आगे तक फैली हुई थी।