श्री राम कॉलेज ऑफ़ कॉमर्स के शिक्षकवृंद के द्वारा नाट्य मंचन की ऐतिहासिक प्रस्तुति

 श्री राम कॉलेज ऑफ़ कॉमर्स के शिक्षकवृंद के द्वारा नाट्य मंचन की ऐतिहासिक प्रस्तुति

Political Trust Magazine -नई दिल्ली वाणिज्य और अर्थशास्त्र के अध्ययन के लिए देश-विदेश में विख्यात श्री राम कॉलेज ऑफ़ कॉमर्स के इतिहास में कॉलेज के शिक्षकवृंद ने प्रथम नाट्य प्रस्तुति की | कॉलेज के शताब्दी वर्ष में डॉ. सुधा शर्मा ‘पुष्प’ के द्वारा लिखित एवं निर्देशित नाटक ‘आचार्य की विवशता’ का मंचन श्रीधर श्रीराम सभागार में अत्यंत भव्य एवं गरिमापूर्ण ढंग से किया गया |दर्शकों से खचाखच भरे सभागार में श्री राम कॉलेज ऑफ़ कॉमर्स के 20 शिक्षक-शिक्षिकाओं के द्वारा मंचित इस नाटक के अधिकतर कलाकार पहली बार मंच पर अभिनय कर रहे थे | एक माह के कड़े परिश्रम से इन अनुभवहीन कलाकारों ने अपनी सधी हुई प्रस्तुति से यह सिद्ध कर दिया कि ‘जहाँ चाह, वहाँ राह |’
आचार्य द्रोण के द्वारा गुरु दक्षिणा के रूप में एकलव्य का अँगूठा माँग लेना समस्त शिक्षक वर्ग के माथे पर कलंक की तरह लगा हुआ है | डॉ. सुधा शर्मा ‘पुष्प’ ने इस विषय पर गंभीर चिंतन के आधार पर तर्कपूर्ण ढंग से आचार्य द्रोण की मन:स्थिति को स्पष्ट करने का प्रयास किया है | आचार्य द्रोण अपनी विवशता और मन की कसक को व्यक्त करते हुए कहते हैं, “राष्ट्रहित में मुझे एकलव्य का अँगूठा माँगना पड़ा, जिसकी कसक सदैव मेरे मन में रही |” इसी प्रकार उन्होंने कुंतीपुत्र कर्ण को शिक्षा न देने का कारण भी स्पष्ट किया| एक विवादास्पद विषय को इतने तार्किक ढंग से व्यक्त करने के लिए पूरे सभागार ने खड़े होकर तालियों की गडगडाहट से इसका अनुमोदन किया |


कॉलेज की प्राचार्या प्रो. सिमरित कौर ने दीप प्रज्वलित करके नाट्य मंचन का शुभारंभ किया | तत्पश्चात डॉ. सौम्या अग्रवाल एवं पलक कनौजिया ने गुरु वंदना पर कथक नृत्य किया | कक्षा में विद्यार्थियों ने गुरु महिमा संबंधी दोहे सुनाए तथा प्रसिद्ध गुरु-शिष्यों के नाम बताए, जिसे सुनकर एक विद्यार्थी ने शिक्षिका से गुरु द्रोण के द्वारा एकलव्य का अँगूठा माँगने का औचित्य पूछा | यहीं से नाटक अपने लक्ष्य की ओर बढ़ गया |
शिक्षिका के सेवानिवृत्त शिक्षक श्वसुर चंद्र दत्त शर्मा ने अपने जीवन के अनुभव पर आधारित प्रसंग सुनाया, जिसके माध्यम से लेखिका एवं निर्देशिका डॉ. सुधा शर्मा ‘पुष्प’ ने एक पौराणिक प्रसंग को वर्तमान संदर्भ से जोड़कर आचार्य द्रोण की कसक को अभिव्यक्ति प्रदान की | नाटक के अंतिम भाग में आचार्य द्रोण एवं चंद्र दत्त शर्मा के संवादों ने आचार्य द्रोण की विवशता एवं पीड़ा को व्यक्त करते हुए दर्शकों को झकझोर कर रख दिया | नाटक के अंत में श्री अभिलाष के संगीत निर्देशन में कलाकारों ने समूह गान से नाटक को चरम परिणिति तक पहुँचा दिया |
नाटक की सशक्त प्रस्तुति में नाटक में अभिनय कर रहे श्री अश्विनी कुमार (आचार्य द्रोण की भूमिका में), डॉ. चारुश्री (शिक्षिका की भूमिका में), प्रो. रवि शर्मा ‘मधुप’ (चंद्र दत्त शर्मा की भूमिका में) तथा विद्यार्थियों की भूमिका में डॉ. स्नेह लता गुप्ता, डॉ. कुलजीत कौर, प्रो. हरेंद्र नाथ तिवारी, प्रो. वंदना जैन, डॉ. प्रिया चौरसिया, डॉ. अनुराधा अग्रवाल, डॉ. प्रशस्ति सिंह, डॉ. राजकुमारी शर्मा, डॉ. सुनीत कुमार, डॉ. साक्षी जोशी,  अभिलाष,  भूपेंद्र भगत, डॉ. मयंक गोयल, डॉ. यतेंद्र शर्मा ने अपने प्रभावशाली अभिनय से दर्शकों को मंत्र-मुग्ध कर दिया | कलाकारों के साज-शृंगार का दायित्व डॉ. शिखा गुप्ता ने अत्यंत कुशलता से निभाया |
नाटक के प्रारंभ में प्रो. रवि शर्मा ‘मधुप’ ने अतिथियों का स्वागत करते हुए कॉलेज के शिक्षकवृंद के द्वारा नाट्य मंचन के विचार से लेकर उसकी प्रस्तुति तक की एक माह की यात्रा का विवरण दिया | नाटक के अंत में प्राचार्या प्रो. सिमरित कौर ने नाटक की लेखिका-निर्देशिका डॉ. सुधा शर्मा ‘पुष्प’ एवं सभी कलाकारों की प्रतिभा, कर्त्तव्यनिष्ठा, संकल्प शक्ति एवं एकजुटता की भूरि-भूरि प्रशंसा की और सभी कलाकारों को प्रमाणपत्र देकर सम्मानित किया |

धन्यवाद ज्ञापन नाटक के कार्यकारी निर्देशक प्रो. रवि शर्मा ‘मधुप’ ने किया |