छोटे दुकानदार अब यूपीआई छोड़ रहे हैं और कैश में लेन-देन कर रहे हैं। उनके पास पहले ही बहुत कम मुनाफा होता है। जीएसटी के तहत पंजीकरण करने पर उन्हें 18 प्रतिशत तक टैक्स जोड़ना पड़ता है, जिससे ग्राहक कट सकते हैं और बिक्री घट सकती है।
छोटे व्यापारी अकाउंटिंग में दक्ष नहीं होते और अक्सर व्यक्तिगत व व्यापारिक खाते अलग नहीं रखते। परिवार के सदस्यों के खातों में पैसे आना भी ‘आय’ माना जा सकता है, जिससे टैक्स का खतरा बढ़ जाता है।
छोटे व्यापारियों में डर का माहौल
छोटे व्यापारियों के पास पहले से सीमित मुनाफा होता है। अगर वे जीएसटी के तहत पंजीकरण करते हैं, तो उन्हें अपने ग्राहकों से टैक्स वसूलना होगा—जो 18% तक हो सकता है। इससे उनके सामान महंगे हो जाएंगे और ग्राहक कट सकते हैं।
निजी और व्यावसायिक लेन-देन का स्पष्ट अंतर नहीं
छोटे व्यापारी अक्सर अपने निजी और व्यापारिक खातों को अलग नहीं रखते। कई बार लेनदेन परिवार के सदस्य—जैसे बेटे, पत्नी या भाई के खातों से होते हैं। ऐसे में सारे ट्रांजैक्शन को आय मान लिया जाता है, और इस पर जीएसटी लगाया जा सकता है। इससे बिना जानबूझे भी व्यापारी टैक्स के दायरे में आ सकते हैं।
कैश की ओर लौटना एक सुरक्षा उपाय
ट्रेड बॉडीज से जुड़े कई व्यापारियों का कहना है कि डिजिटल पेमेंट करने से अब डर लगने लगा है, क्योंकि उन्हें आशंका है कि कोई भी बड़ा ट्रांजैक्शन विभाग के रडार पर आ सकता है। ऐसे में कई छोटे दुकानदार अब खुलकर कह रहे हैं कि “भीख मांग लेंगे, लेकिन GST की झंझट नहीं पालेंगे।” यह रुझान स्पष्ट रूप से कैश लेनदेन की वापसी की ओर इशारा करता है।
नोटिस अंतिम नहीं, लेकिन डर असली है
कर्नाटक में हाल ही में 6,000 से अधिक व्यापारियों को नोटिस भेजे गए, जो UPI लेनदेन के आंकड़ों पर आधारित थे। हालांकि वाणिज्यिक कर विभाग का कहना है कि ये नोटिस अंतिम नहीं हैं और व्यापारी विभाग में आकर स्पष्टीकरण दे सकते हैं। लेकिन व्यापारी वर्ग का कहना है कि प्रारंभिक डर ही काफी है डिजिटल पेमेंट से हटने के लिए।