अमेरिका, रूस और चीन में आर्कटिक पर कब्जे़ की होड़ ख़तरनाक!

 अमेरिका, रूस और चीन में आर्कटिक पर कब्जे़ की होड़ ख़तरनाक!
नई दिल्ली। उत्तरी ध्रुव में हाल के दिनों में तनाव बढ़ता जा रहा है। एक तरफ अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ग्रीनलैंड को हासिल करना चाहते हैं, तो दूसरी तरफ रूस आर्कटिक में अपने सैन्य ठिकानों का आधुनिकीकरण कर रहा है।
चीन के बर्फ तोड़ने वाले जहाज़ आर्कटिक के इलाक़े में नए समुद्री मार्ग खोल रहे हैं और जासूसों की पहचान उजागर हो रही है। लेकिन जैसे-जैसे दुनिया के सबसे ठंडे इलाक़ों में से एक में संघर्ष तेज़ हो रहा है, एक नाज़ुक सुरक्षा संतुलन के टूटने का जोखिम भी दिखाई दे रहा है। इन हालातों ने हथियारों की एक नई होड़ शुरू कर दी है।
एक दूसरे को डराने की रणनीति
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कई बार ग्रीनलैंड पर कब्ज़े की मंशा ज़ाहिर की है। अमेरिका और सोवियत संघ के बीच शीत युद्ध के शुरुआती दौर में परमाणु हथियार, युद्ध के सबसे घातक हथियार थे। ये हथियार दोनों पक्षों के बीच ‘डर के संतुलन’ को बनाए रखे हुए हैं और इन हथियारों को अपने लक्ष्य तक पहुंचाने का सबसे तेज़ रास्ता- उत्तरी ध्रुव के ऊपर से जाता था। शीत युद्ध की शुरुआत में, अमेरिका ने ग्रीनलैंड के सुदूर उत्तरी हिस्से में एक अहम सैन्य ठिकाना बनाया- जिसे पहले थुले कहा जाता था। हाल ही में ही इसका नाम बदलकर पिटुफ़िक स्पेस बेस रखा गया है। इस बेस पर एक विशाल रडार बिल्कुल किसी विशालकाय संतरी की तरह खड़ा था जो अंतरिक्ष की ओर देखता रहता है ताकि उत्तर की दिशा से आने वाली किसी भी चीज़ को ट्रैक कर सके।
इसके पास पहुंचते ही कार का इंजन अजीब तरह से शोर करने लगता है और डैशबोर्ड कंट्रोल तेज़ी से हिलने लगता है। दरअसल ऐसा उत्सर्जन की वजह से होता रहता है।
सैन्य बेस के अंदर अमेरिकी सैन्य अधिकारी इस रडार के ज़रिये वो अंतरिक्ष में सक्रिय टेनिस बॉल जितनी छोटी चीज़ों को भी देख सकते हैं। शीत युद्ध भले ही ख़त्म हो गया हो लेकिन इस जगह की अहमियत आज भी कम नहीं हुई है। यह अब भी बीएमईडब्ल्यूएस (अमेरिका का बैलिस्टिक मिसाइल अर्ली वॉर्निंग सिस्टम) का अहम हिस्सा है।