सांसों पर संकट, धूल से घुट रहा दम, डब्ल्यूएमओ की चेतावनी

 सांसों पर संकट, धूल से घुट रहा दम, डब्ल्यूएमओ की चेतावनी
Nimmi thakur 
नई दिल्ली। डब्ल्यूएमओ की रिपोर्ट के अनुसार रेत और धूल भरी आंधियों का खतरा अब तेजी से बढ़ा है। इससे लगभग 150 देशों के 33 करोड़ से अधिक लोग सीधे तौर पर प्रभावित हो रहे हैं। हर साल करीब 200 करोड़ टन धूल वातावरण में घुल रही है जिसका कुल भार मिस्र के गीजा स्थित 307 पिरामिडों के बराबर है।
धूल और रेत से उठता संकट अब किसी क्षेत्र विशेष तक सीमित नहीं रहा। हर साल वातावरण में प्रवेश कर रही 200 करोड़ टन धूल से 380 करोड़ लोग प्रभावित हो रहे हैं, जिनमें से कई वर्षों तक इसके संपर्क में रहे। विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) की ताजा रिपोर्ट इस वैश्विक चुनौती की भयावहता उजागर करती है।
डब्ल्यूएमओ की रिपोर्ट के मुताबिक दुनियाभर में रेत और धूल भरी आंधियों का खतरा तेजी से बढ़ रहा है, जिससे लगभग 150 देशों के 33 करोड़ से अधिक लोग सीधे तौर पर प्रभावित हो रहे हैं। हर साल करीब 200 करोड़ टन धूल वातावरण में घुल रही है जिसका कुल भार मिस्र के गीजा स्थित 307 पिरामिडों के बराबर है। यह धूल हवा, स्वास्थ्य, कृषि और वैश्विक अर्थव्यवस्था को गंभीर नुकसान पहुंचा रही है। यह रिपोर्ट 12 जुलाई को ‘रेत और धूल के तूफानों से मुकाबले के अंतरराष्ट्रीय दिवस’ के अवसर पर जारी की गई। इस दिवस की घोषणा संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2023 में की थी, ताकि इन तूफानों के खतरनाक असर को कम करने और वैश्विक सहयोग को बढ़ावा देने के प्रयासों को मजबूती मिल सके। 2024 में धूल की औसत मात्रा भले ही 2023 के मुकाबले थोड़ी कम रही हो, लेकिन क्षेत्रीय असर अधिक घातक रहा। रिपोर्ट के मुताबिक वातावरण में पहुंचने वाली 80 फीसदी से ज्यादा धूल उत्तर अफ्रीका और मध्य पूर्व के रेगिस्तानों से आती है, जो हवा के जरिये हजारों किलोमीटर दूर तक फैलती है।