मुख्यमंत्री ने हाल में सुझाव दिया था कि कक्षा आठ से जुंबा सत्र स्कूलों में लागू किए जाएं। इसके बाद शिक्षा विभाग ने शिक्षकों को जुंबा की ट्रेनिंग देने की प्रक्रिया भी शुरू कर दी थी। लेकिन कुछ मुस्लिम संगठनों का कहना है कि यह कदम छात्रों की “नैतिकता” को प्रभावित कर सकता है, विशेषकर तब जब लड़के और लड़कियां एक साथ यह डांस करते हैं।
पश्चिमी संस्कृति का अंधानुकरण
सुन्नी विद्वानों के संगठन समस्था केरल जमीयतुल उलेमा के नेता अब्दुल समद पूकोट्टूर ने सोशल मीडिया पोस्ट में कहा कि जुंबा जैसे पश्चिमी कार्यक्रम से बचना चाहिए। उन्होंने दावा किया कि यह डांस कई देशों में प्रतिबंधित है और इसके बजाय तनाव कम करने के भारतीय तरीकों को अपनाया जाना चाहिए।
राजनीतिक और शैक्षिक प्रतिक्रिया
मुस्लिम स्टूडेंट्स फेडरेशन (MSF), जो कि इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग का छात्र संगठन है, ने सरकार की इस पहल पर सवाल उठाते हुए कहा कि बिना किसी गहन अध्ययन के एकतरफा निर्णय लिया गया है। कई अन्य मुस्लिम संगठनों ने भी इसे “नैतिक मूल्यों के खिलाफ” करार दिया।
केरल सरकार के सामान्य शिक्षा मंत्री वी. शिवनकुट्टी ने कहा कि इस तरह की आपत्तियां समाज में ऐसा जहर घोलती हैं जो नशे से भी ज्यादा खतरनाक है। मंत्री शिवनकुट्टी ने स्पष्ट किया कि बच्चों से कोई अशालीन पहनावा नहीं पहना जा रहा है। वे स्कूल यूनिफॉर्म में ही ज़ुंबा कर रहे हैं। उन्होंने आगे कहा, “खेलकूद और व्यायाम से बच्चों में मानसिक और शारीरिक ऊर्जा, स्वास्थ्य और सकारात्मक सोच का विकास होता है। इसका उनके अध्ययन और व्यक्तित्व पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसलिए ऐसे सेहतमंद और रचनात्मक कार्यक्रमों को प्रोत्साहित किया जाना जरूरी है।”
हालांकि, उच्च शिक्षा मंत्री आर. बिंदु ने इन आपत्तियों की आलोचना करते हुए कहा कि “जुंबा एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण से फिटनेस के लिए कारगर है और इसे नैतिकता से जोड़ना अनुचित है।” शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने कहा कि जुंबा एक वैश्विक स्तर पर लोकप्रिय फिटनेस फॉर्म है और इसका उद्देश्य केवल छात्रों को तनावमुक्त और सेहतमंद बनाना है।