43 रोहिंग्या को समंदर में फेंक दिया’ सुप्रीम कोर्ट ने पूछा- किसने देखा, लाओ सबूत? वकील को जमकर फटकार
- दिल्ली राजनीति राष्ट्रीय
Political Trust
- May 17, 2025
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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने आज शुक्रवार को उन याचिकाकर्ताओं को फटकार लगाई है। जिन्होंने कहा कि 43 रोहिंग्या शरणार्थियों को अंडमान सागर में छोड़ दिया गया है। इनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं। रोहिंग्या शरणार्थियों को म्यांमार वापस भेजने के लिए अंडमान सागर में छोड़ा गया है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब देश मुश्किल दौर से गुजर रहा है तो आप काल्पनिक विचार लेकर आए हैं।
शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने रोहिंग्या शरणार्थियों के कथित तौर पर म्यांमार भेजने की याचिका पर सुनवाई की। याचिका में दावा किया कि भारत सरकार ने बुजुर्ग, औरतें और बच्चों के अलावा कैंसर जैसे गंभीर बीमारियों से पीड़ित 41 रोहिंग्याओं को जबरन म्यांमार भेज दिया। याचिका में दावा किया कि इन लोगों को अंडमान ले जाकर समुद्र में फेंक दिया गया। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस सूर्याकांत और जस्टिस एन. कोटिस्वर सिंह की बेंच ने याचिका पर सवाल उठाए और इसे ‘बड़ी खूबसूरती से गढ़ी कहानी’ बताया। कोर्ट ने कहा कि याचिका में कोई पक्का सबूत नहीं है, सिर्फ हवा-हवाई और बिना आधार वाले दावे किए गए हैं। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कोई राहत नहीं दी।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, जस्टिस सूर्याकांत ने याचिकाकर्ता के वकील से सख्त लहजे में कहा, “हर दिन आप नई-नई कहानी लेकर आते हैं। इस कहानी का आधार क्या है? बहुत खूबसूरती से बनाई गई कहानी! कोई सबूत तो दिखाइए।” कोर्ट ने पूछा कि क्या कोई वीडियो या गवाह है जो इन दावों को साबित कर सके। याचिकाकर्ता की तरफ से सीनियर वकील कॉलिन गोंसाल्वेस ने बताया कि दिल्ली में मौजूद याचिकाकर्ताओं को फोन कॉल से यह खबर मिली। उन्होंने कहा कि म्यांमार के तट से टेप रिकॉर्डिंग मौजूद है और सरकार इसकी जाँच कर सकती है। लेकिन जस्टिस कांत ने सवाल किया कि दिल्ली में बैठा याचिकाकर्ता अंडमान की घटना को कैसे सच साबित कर सकता है।
कोर्ट ने इस याचिका को 31 जुलाई 2025 को सुनवाई के लिए एक दूसरे रोहिंग्या मामले के साथ जोड़ दिया, जो तीन जजों की बेंच के सामने है। कोर्ट ने फौरन सुनवाई और निर्वासन रोकने की याचिकाकर्ता की माँग को खारिज कर दिया। गोंसाल्वेस ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय की एक रिपोर्ट का जिक्र किया, जिसमें इस मामले की जांच शुरू होने की बात थी। इस पर जस्टिस कांत ने कहा कि वे इस रिपोर्ट पर तीन जजों की बेंच में बात करेंगे और याचिकाकर्ता को यह रिपोर्ट कोर्ट में पेश करने को कहा। उन्होंने आगे कहा, “बाहर बैठे लोग हमारे देश की संप्रभुता को चुनौती नहीं दे सकते।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, जस्टिस सूर्याकांत ने याचिकाकर्ता के वकील से सख्त लहजे में कहा, “हर दिन आप नई-नई कहानी लेकर आते हैं। इस कहानी का आधार क्या है? बहुत खूबसूरती से बनाई गई कहानी! कोई सबूत तो दिखाइए।” कोर्ट ने पूछा कि क्या कोई वीडियो या गवाह है जो इन दावों को साबित कर सके। याचिकाकर्ता की तरफ से सीनियर वकील कॉलिन गोंसाल्वेस ने बताया कि दिल्ली में मौजूद याचिकाकर्ताओं को फोन कॉल से यह खबर मिली। उन्होंने कहा कि म्यांमार के तट से टेप रिकॉर्डिंग मौजूद है और सरकार इसकी जाँच कर सकती है। लेकिन जस्टिस कांत ने सवाल किया कि दिल्ली में बैठा याचिकाकर्ता अंडमान की घटना को कैसे सच साबित कर सकता है।
कोर्ट ने इस याचिका को 31 जुलाई 2025 को सुनवाई के लिए एक दूसरे रोहिंग्या मामले के साथ जोड़ दिया, जो तीन जजों की बेंच के सामने है। कोर्ट ने फौरन सुनवाई और निर्वासन रोकने की याचिकाकर्ता की माँग को खारिज कर दिया। गोंसाल्वेस ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय की एक रिपोर्ट का जिक्र किया, जिसमें इस मामले की जांच शुरू होने की बात थी। इस पर जस्टिस कांत ने कहा कि वे इस रिपोर्ट पर तीन जजों की बेंच में बात करेंगे और याचिकाकर्ता को यह रिपोर्ट कोर्ट में पेश करने को कहा। उन्होंने आगे कहा, “बाहर बैठे लोग हमारे देश की संप्रभुता को चुनौती नहीं दे सकते।