हिंदी फिल्मों के पहले लवर बॉय ऋषि कपूर नए जमाने के प्रेमी युवा कहलाए
- बॉलीवुड मनोरंजन
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- April 30, 2025
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नई दिल्ली। ऋषि कपूर हिंदी फिल्मों के पहले लवर बॉय थे। बॉबी इस लिहाज से सबसे बेहतर फिल्म थी। जो परंपरागत प्रेम कहानियों की लीक से हटकर थी। फिल्म में ना गांव और न राजमहल की चहारदीवारी। एकदम शहरी किशोर जोड़े की प्रेम कहानी। नतीजा- फिल्म सदाबहार सुपर हिट साबित हुई। डिंपल कपाड़िया के साथ ऋषि की जोड़ी ने मिसाल पेश की। ऋषि नये जमाने के प्रेमी युवा कहलाए। ऋषि कपूर हिंदी फिल्मों के पहले रॉक स्टार भी थे। कर्ज इस हिसाब से सबसे हिट फिल्म थी। एक हसीना थी, एक दीवाना था… वाकई ये नॉस्टेल्जिया जगाने वाला अनोखा तराना था। मिथुन चक्रवर्ती के डिस्को डांसर से पहले उन्होंने रॉक स्टार का रुतबा हासिल कर लिया था। जब लैला के मजनूं बने तो दर्शकों को जैसे पागल ही बना दिया। जो लिखकर माशूका का नाम जमीं पर हरदम लैला-लैला करता था। वैसा मजनूं फिर दोबारा नहीं हुआ।
एच एस रवैल के निर्देशन में सन् 1976 की ब्लॉकबस्टर लैला मजनूं ऋषि कपूर की कई मायने में अलहदा फिल्म है। उन्होंने जिस अंदाज में अपने रोल को निभाया, उसे देखकर ये कहना गलत नहीं होगा कि मजनूं मतलब ऋषि कपूर। ना तो इससे पहले और ना ही इसके बाद फिल्मी पर्दे पर कोई दूसरा कलाकार उनके जैसा मजनूं बन सका। मजनूं का मतलब ही होता है। जो अपनी लैला की याद में एकदम पागल जैसा हो जाए। फटी पोशाक, बिखरे बाल, सूखे-मुरझाए चेहरे पर बढ़ी हुई दाढ़ियां, दुनिया की हर हलचल से बेखबर, कई-कई दिनों से भूखा-प्यासा, नंगे पांव दर-दर का भटकाव। ये सबकुछ बताने के लिए था कि मजनूं आखिर किसे कहते हैं। ऋषि कपूर इस रोल में परफेक्ट दिखे। ऋषि कपूर मजनूं के किरदार को जीकर हमेशा-हमेशा के लिए इसे जीवंत कर गए। आगे चलकर मजनूं के पर्याय ही बन गए। उस फिल्म के रिलीज के 49 साल बाद आज भी जब कभी मजनूं का जिक्र होता है- हर किसी के जेहन में बस ऋषि कपूर का ही चेहरा प्रतिबिंब बना लेता है। ऋषि के अपोजिट लैला के किरदार में रंजीता ने भी बेमिसाल अदाकारी से इस अमर प्रेम कहानी को अलग ही अमरता प्रदान की। इसी तरह डैनी को भी नहीं भूला जा सकता। फिल्म की पटकथा अबरार अल्बी ने लिखी थी और गाने लिखे थे- साहिर लुधियानवी ने, जिसका संगीत मदन मोहन और बाद में जयदेव ने तैयार किया था।
एच एस रवैल के निर्देशन में सन् 1976 की ब्लॉकबस्टर लैला मजनूं ऋषि कपूर की कई मायने में अलहदा फिल्म है। उन्होंने जिस अंदाज में अपने रोल को निभाया, उसे देखकर ये कहना गलत नहीं होगा कि मजनूं मतलब ऋषि कपूर। ना तो इससे पहले और ना ही इसके बाद फिल्मी पर्दे पर कोई दूसरा कलाकार उनके जैसा मजनूं बन सका। मजनूं का मतलब ही होता है। जो अपनी लैला की याद में एकदम पागल जैसा हो जाए। फटी पोशाक, बिखरे बाल, सूखे-मुरझाए चेहरे पर बढ़ी हुई दाढ़ियां, दुनिया की हर हलचल से बेखबर, कई-कई दिनों से भूखा-प्यासा, नंगे पांव दर-दर का भटकाव। ये सबकुछ बताने के लिए था कि मजनूं आखिर किसे कहते हैं। ऋषि कपूर इस रोल में परफेक्ट दिखे। ऋषि कपूर मजनूं के किरदार को जीकर हमेशा-हमेशा के लिए इसे जीवंत कर गए। आगे चलकर मजनूं के पर्याय ही बन गए। उस फिल्म के रिलीज के 49 साल बाद आज भी जब कभी मजनूं का जिक्र होता है- हर किसी के जेहन में बस ऋषि कपूर का ही चेहरा प्रतिबिंब बना लेता है। ऋषि के अपोजिट लैला के किरदार में रंजीता ने भी बेमिसाल अदाकारी से इस अमर प्रेम कहानी को अलग ही अमरता प्रदान की। इसी तरह डैनी को भी नहीं भूला जा सकता। फिल्म की पटकथा अबरार अल्बी ने लिखी थी और गाने लिखे थे- साहिर लुधियानवी ने, जिसका संगीत मदन मोहन और बाद में जयदेव ने तैयार किया था।
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