नक्सलमुक्त भारत अभियान: आतंक से आत्मनिर्भरता की ओर एक ऐतिहासिक यात्रा

 नक्सलमुक्त भारत अभियान: आतंक से आत्मनिर्भरता की ओर एक ऐतिहासिक यात्रा

वामपंथी उग्रवाद (एलडब्‍ल्‍यूई), जिसे अक्सर नक्सलवाद के रूप में जाना जाता है, भारत की सबसे गंभीर आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों में से एक है।

“यह सच है कि माओवादी हिंसा ने मध्य और पूर्वी भारत के कई जिलों की प्रगति को रोक दिया था। इसीलिए 2015 में हमारी सरकार ने माओवादी हिंसा को खत्म करने के लिए एक व्यापक ‘राष्ट्रीय नीति और कार्य योजना’ तैयार की। हिंसा के प्रति शून्य सहिष्णुता के साथ-साथ, हमने इन क्षेत्रों में गरीब लोगों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए बुनियादी ढांचे और सामाजिक सशक्तिकरण को बढ़ावा देने पर भी ध्यान केंद्रित किया है।”
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी


नक्सलमुक्त भारत अभियान: खतरनाक क्षेत्र से लेकर विकास और वृद्धि के रास्‍ते तक
नक्सलमुक्त भारत अभियान: खतरनाक क्षेत्र से लेकर विकास और वृद्धि के रास्‍ते तक

परिचय: एक लंबी और चुनौतीपूर्ण लड़ाई

देश की आंतरिक सुरक्षा को दशकों तक झकझोरने वाला वामपंथी उग्रवाद (नक्सलवाद), आज इतिहास के अंतिम पन्नों की ओर अग्रसर है। यह केवल एक उग्र आंदोलन नहीं था, बल्कि एक ऐसी चुनौती थी जिसने लोकतंत्र, विकास और संविधान में विश्वास रखने वाले भारत को भीतर से कमजोर करने का प्रयास किया।

1967 में पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी से शुरू हुआ यह आंदोलन “जन अधिकार” की आड़ में बंदूक, बारूदी सुरंगों और खून-खराबे का प्रतीक बन गया। माओवादी तत्वों ने आदिवासियों और ग्रामीणों के विकास की राह में दीवार खड़ी कर दी—बच्चों को शिक्षा से, गांवों को स्वास्थ्य सेवा से, और युवाओं को रोजगार से वंचित कर दिया।


‘रेड कॉरिडोर’ से ‘डिजिटल इंडिया’ की राह तक

जहाँ कभी नक्सलियों की गोलियां गूंजती थीं, आज वहाँ इंटरनेट के टॉवर खड़े हो रहे हैं, सड़कें बन रही हैं, और हर हाथ को काम मिल रहा है। भारत सरकार ने सुरक्षा, विकास और संवाद की त्रिस्तरीय रणनीति को अपनाकर इस भीषण समस्या को न केवल नियंत्रित किया, बल्कि लगभग समाप्ति की कगार तक पहुँचा दिया।

  • हिंसा में ऐतिहासिक गिरावट:
    2010 में नक्सल हिंसा की 1936 घटनाएँ दर्ज हुई थीं, जो 2024 में घटकर मात्र 374 रह गई हैं – 81% की गिरावट।
    इसी अवधि में नागरिकों और सुरक्षा बलों की संयुक्त मृत्यु संख्या 1005 से घटकर 150 रह गई है – 85% की कमी।
  • प्रभावित जिलों में भारी गिरावट:
    2018 में जहां 126 जिले नक्सल प्रभावित थे, अब 2024 में यह संख्या केवल 38 रह गई है।
    अत्यधिक प्रभावित जिलों की संख्या 12 से घटकर 6, और चिंताजनक जिलों की संख्या 9 से घटकर 6 हो गई है।
  • 8,000 से अधिक नक्सलियों ने हथियार छोड़े:
    यह न केवल सरकार की सफलता है, बल्कि यह राष्ट्र की मुख्यधारा में लौटने की चाह रखने वाले युवाओं की भी जीत है।

विकास: शांति की असली नींव

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार ने यह स्पष्ट किया कि केवल सुरक्षा कार्रवाई से समाधान नहीं होगा, जब तक कि इन क्षेत्रों में विकास की किरण न पहुँचे।

  • विशेष केंद्रीय सहायता (SCA):
    सबसे अधिक प्रभावित जिलों को ₹30 करोड़ और चिंता वाले जिलों को ₹10 करोड़ की वित्तीय मदद दी जा रही है।
  • सड़क, स्वास्थ्य और शिक्षा की पहुँच:
    हजारों किलोमीटर सड़कें, 4G टावर, हेल्थ सेंटर और आवासीय विद्यालय इन क्षेत्रों में खोले जा रहे हैं।
    जहाँ कभी बंदूक थी, अब वहाँ किताबें हैं। जहाँ बंकर थे, अब अस्पताल हैं।

आदिवासी गौरव का पुनर्निर्माण

यह अभियान केवल नक्सलियों से मुक्ति नहीं है, बल्कि यह आदिवासी अस्मिता और आत्मसम्मान की पुनर्स्थापना भी है। आदिवासी युवाओं को अब बंदूक नहीं, बल्कि सरकार की स्कीमों से जीवन बदलने का अवसर मिल रहा है। वन धन योजना, ई-ग्राम संपर्क, जनजातीय गौरव अभियान जैसी योजनाओं ने इन इलाकों को बदलाव का चेहरा बना दिया है।


 एक नए भारत की ओर

नक्सलमुक्त भारत अभियान, मोदी सरकार की दूरदृष्टि, संकल्पशक्ति और सेवा भाव का जीवंत प्रमाण है। यह दर्शाता है कि अगर इच्छाशक्ति हो, तो आतंक की जगह विकास, और हिंसा की जगह विश्वास की नींव रखी जा सकती है।

31 मार्च 2026 तक नक्सलवाद के पूर्ण उन्मूलन का लक्ष्य न केवल संभव है, बल्कि अब साकार होता भारत है।


“यह केवल सुरक्षा की विजय नहीं है, यह उस माँ की जीत है जिसने अपने बेटे को स्कूल भेजा, उस किसान की जीत है जिसने खेत तक सड़क देखी, और उस आदिवासी की जीत है जिसे पहली बार लगा कि भारत सरकार उसका भी है।”