खरगे का भाजपा पर आरोप, ‘वंदे मातरम की ध्वज वाहक है कांग्रेस’

 खरगे का भाजपा पर आरोप, ‘वंदे मातरम की ध्वज वाहक है कांग्रेस’
नई दिल्ली। कांग्रेस राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने आरोप लगाया कि ‘1925 में अपनी स्थापना के बाद से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने इसकी सार्वभौमिक श्रद्धा के बावजूद ‘वंदे मातरम’ से दूरी बनाए रखी है। इसके साहित्य में एक बार भी इस गाीत का जिक्र नहीं मिलता।’
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने शुक्रवार अपने एक बयान में कहा कि कांग्रेस पार्टी राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम की गर्वित ध्वज वाहक है। राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम के 150 साल पूरे होने के अवसर पर खरगे ने कहा कि वंदे मातरम ने ही देश की सामूहिक आत्मा को जगाया और देश की आजादी का बुलंद नारा बन गया। वंदे मातरम देश की एकता में अनेकता की भावना को दर्शाता है।
‘वंदे मातरम की ध्वज वाहक कांग्रेस’
खरगे ने कहा कि ‘भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस वंदे मातरम की गर्वित ध्वजवाहक रही है। साल 1896 में कलकत्ता में कांग्रेस के अधिवेशन के दौरान तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष रहमतुल्लाह सयानी के नेतृत्व में गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने पहली बार सार्वजनिक रूप से वंदे मातरम गाया था। उस पल ने आजादी की लड़ाई में नई जान फूंक दी। कांग्रेस समझ गई थी कि ब्रिटिश साम्राज्य की फूट डालो और राज करो की नीति, धार्मिक, जातिगत और क्षेत्रीय पहचानों का इस्तेमाल करके, भारत की एकता को तोड़ने के लिए बनाई गई थी। इसके खिलाफ, वंदे मातरम एक अटूट शक्ति गीत के रूप में उभरा, जिसने सभी भारतीयों को भारत माता के प्रति भक्ति में एकजुट किया।’
कांग्रेस अध्यक्ष ने संघ और भाजपा पर लगाए आरोप
कांग्रेस अध्यक्ष खरगे ने कहा कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने औपचारिक रूप से ‘वंदे मातरम’ को राष्ट्र गीत के रूप में मान्यता दी, और इसे भारत की एकता में अनेकता के प्रतीक के रूप में फिर से स्थापित किया। संघ और भाजपा पर आरोप लगाते हुए खरगे ने कहा कि ‘हालांकि, यह बहुत अजीब बात है कि जो लोग आज खुद को राष्ट्रवाद का स्वघोषित रक्षक बताते हैं- संघ और भाजपा, उन्होंने कभी भी अपनी शाखाओं या दफ्तरों में ‘वंदे मातरम’ या हमारे राष्ट्रगान, ‘जन गण मन’ नहीं गाया है। इसके बजाय, वे ‘नमस्ते सदा वत्सले’ गाते रहते हैं, जो उनके संगठन की महिमा करने वाला गीत है, देश का नहीं। खरगे ने आरोप लगाया कि ‘1925 में अपनी स्थापना के बाद से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने इसकी सार्वभौमिक श्रद्धा के बावजूद ‘वंदे मातरम’ से दूरी बनाए रखी है। इसके साहित्य में एक बार भी इस गाीत का जिक्र नहीं मिलता।’