दूसरे बच्चे के लिए सेरोगेसी पर हटेगी रोक? सुप्रीम कोर्ट करेगा सांविधानिकता की जांच

 दूसरे बच्चे के लिए सेरोगेसी पर हटेगी रोक? सुप्रीम कोर्ट करेगा सांविधानिकता की जांच
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम मुद्दे पर सुनवाई करने का निर्णय लिया है। अदालत यह तय करेगी कि क्या सरकार द्वारा दूसरे बच्चे के लिए सरोगेसी पर लगाई गई रोक नागरिकों के प्रजनन अधिकारों में दखल है। यह मामला उन दंपतियों से जुड़ा है जो सेकेंडरी इंफर्टिलिटी यानी पहले बच्चा होने के बाद दोबारा संतान प्राप्त करने में असमर्थ हैं।
कानून के अनुसार, यदि किसी दंपति का एक जीवित बच्चा है। चाहे वह जैविक हो, गोद लिया गया हो या सरोगेसी से जन्मा हो तो उन्हें दूसरी बार सरोगेसी की अनुमति नहीं दी जाती। हालांकि, इसमें एक अपवाद है। यदि पहला बच्चा मानसिक या शारीरिक रूप से विकलांग है या किसी असाध्य बीमारी से पीड़ित है, तो जिला चिकित्सा बोर्ड की सिफारिश और संबंधित प्राधिकरण की मंजूरी के बाद सरोगेसी की अनुमति मिल सकती है।
जस्टिस बोलीं- संविधानिक जांच जरूरी
न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और आर महादेवन की पीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि यह प्रतिबंध देश की बढ़ती जनसंख्या को देखते हुए उचित लग सकता है। हालांकि, अदालत ने यह भी स्वीकार किया कि यह मामला नागरिकों के निजी जीवन और उनके प्रजनन अधिकारों से जुड़ा है, इसलिए इसकी संविधानिक जांच जरूरी है।
याचिकाकर्ता बोले- यह प्रावधान असंविधानिक
याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि केंद्र सरकार को नागरिकों के व्यक्तिगत जीवन और प्रजनन विकल्पों में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है। उन्होंने कहा कि ‘इंफर्टिलिटी’ (बांझपन) की परिभाषा केवल पहले बच्चे के न होने तक सीमित नहीं है। सरोगेसी और असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी एक्ट दोनों ही ‘सेकेंडरी इंफर्टिलिटी’ को भी मान्यता देते हैं, इसलिए कानून का यह प्रावधान असंविधानिक है।