रिजर्व और स्टेट बैंक के अर्थशास्त्री आपस में भिड़े, नकल करके आर्थिक रिसर्च रिपोर्ट बनाने के आरोप

 रिजर्व और स्टेट बैंक के अर्थशास्त्री आपस में भिड़े, नकल करके आर्थिक रिसर्च रिपोर्ट बनाने के आरोप

नई दिल्ली। देश के मौद्रिक प्राधिकरण रिजर्व बैंक और देश के सबसे बड़े बैंक स्टेट बैंक के अर्थशास्त्री सार्वजनिक रूप से भिड़ गए। यह भिड़ंत आर्थिक रिसर्च की एक रिपोर्ट में नकल के मुद्दे पर हुई। हैरानी की बात ये है कि ये आरोप-प्रत्यारोप सार्वजनिक तौर पर सोशल मीडिया मंच लिंक्डइन पर लगाए गए। इस मामले ने देश के दो प्रमुख आर्थिक संस्थानों को थोड़ा असहज कर दिया है।

रिजर्व बैंक अर्थशास्त्री ने लगाए डेटा चोरी के आरोप

दरअसल रिजर्व बैंक के मौद्रिक नीति विभाग के असिस्टेंट जनरल मैनेजर सार्थक गुलाटी ने लिंक्डइन पर साझा एक पोस्ट में आरोप लगाया कि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की रिसर्च टीम ने एसबीआई की Ecowrap पब्लिकेशन रिपोर्ट के लिए केंद्रीय बैंक की मौद्रिक नीति रिपोर्ट (एमपीआर) के हालिया संस्करण से बिना पूछे डेटा चोरी करने का आरोप लगाया। सार्थक गुलाटी ने सोशल मीडिया पर साझा पोस्ट में लिखा, ‘वित्तीय और आर्थिक पेशेवर होने के नाते हम मौलिकता पर निर्भर होते हैं, लेकिन ये बेहद चिंताजनक है कि स्टेट बैंक की हालिया Ecowrap रिपोर्ट का डेटा रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति रिपोर्ट से जैसा का तैसा नकल कर लिया गया और इसकी इजाजत भी नहीं ली गई।’

आरबीआई जारी करता है मौद्रिक नीति रिपोर्ट

आरबीआई कानून के तहत मौद्रिक नीति रिपोर्ट हर छह महीने में प्रकाशित होती है। इस रिपोर्ट में महंगाई के कारण और महंगाई को लेकर अगले 6-18 महीनों की भविष्यवाणी की जाती है। सार्थक गुलाटी ने आरोप लगाया कि इस तरह से आर्थिक रिसर्च डेटा की चोरी न सिर्फ पाठकों को गुमराह करेगी बल्कि इससे आर्थिक रिसर्च के स्टैंडर्ड को भी धक्का लगेगा। स्टेट बैंक के अर्थशास्त्री तापस परीदा द्वारा लिंक्डइन पर ही रिजर्व बैंक के अर्थशास्त्री सार्थक गुलाटी के आरोप को खारिज कर दिया गया है। हालांकि अभी तक रिजर्व बैंक और स्टेट बैंक की तरफ से इसे लेकर कोई स्पष्टीकरण या आधिकारिक बयान जारी नहीं किया गया है