सर्वपितृ अमावस्या पर पितरों की शांति  और उनका आर्शिवाद पाने के लिए गंगा स्नान का महत्व और मान्यताएं

 सर्वपितृ अमावस्या पर पितरों की शांति  और उनका आर्शिवाद पाने के लिए गंगा स्नान का महत्व और मान्यताएं
नई दिल्ली। हिंदू धर्म में अमावस्या तिथि का विशेष महत्व बताया गया है। अमावस्या तिथि को पितरों के तर्पण के लिए शुभ और उत्तम माना जाता है। आश्विन मास की अमावस्या को सर्वपितृ अमावस्या कहा जाता है। इस दिन पितरों का पिंडदान, श्राद्ध कर्म और तर्पण किया जाता है। इसे पितरों की विदाई का दिन माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन पितरों को तृप्त करके ही वापस भेजना चाहिए। ऐसा करने से घर-परिवार पर पितरों का आशीर्वाद बना रहता है।
सर्वपितृ अमावस्या 21 सितंबर, रविवार यानी आज के दिन है। यह दिन पूर्ण रूप से पितरों को समर्पित होता है। शास्त्रों में इस तिथि पर स्नान, तर्पण और दान-पुण्य का विशेष महत्व बताया गया है।
पापों का नाश
सर्वपितृ अमावस्या पर गंगा, यमुना या किसी तीर्थ स्थल की नदी में स्नान करना शुभ माना गया है। संभव न हो तो स्नान के जल में गंगाजल मिलाकर स्नान करना उत्तम है। मान्यता है कि ऐसा करने से जन्म-जन्मांतर के पाप धुल जाते हैं और आत्मा शुद्ध होती है।
पितरों की आत्मा शांति
इस दिन स्नान करके तर्पण और पिंडदान करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है। पितृ प्रसन्न होकर अपने वंशजों को सुख, समृद्धि और दीर्घायु का आशीर्वाद देते हैं।
मोक्ष की प्राप्ति
सर्वपितृ अमावस्या पर गंगा स्नान करने से न केवल पितरों की आत्मा उच्च लोक में गमन करती है बल्कि साधक को भी मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है।
गंगा स्नान का महत्व
गंगा भारत की सबसे पवित्र नदियों में मानी जाती है। गंगा स्नान को पाप नाशिनी और मोक्षदायिनी कहा गया है। शास्त्रों में वर्णित है कि गंगा स्नान करने से जन्मों के पाप मिट जाते हैं और आत्मा पवित्र हो जाती है।
सर्वपितृ अमावस्या पर स्नान की विधि
प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें। स्नान से पहले संकल्प लें कि यह स्नान पितरों की तृप्ति और शांति के लिए है। स्नान के समय पितरों का नाम लेकर तिल, अक्षत, पुष्प और जल अर्पित करें। स्नान के बाद तर्पण और पिंडदान करें। अंत में ब्राह्मणों और जरूरतमंदों को भोजन व दान अवश्य करें।