Old Pension Scheme: पेंशन को लेकर नया नियम लागू, नए और पुराने सभी कर्मचारी की बल्ले-बल्ले
- दिल्ली राष्ट्रीय
Political Trust
- September 1, 2025
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नई दिल्ली। मोदी सरकार ने 2025 में एक नई यूनिफाइड पेंशन योजना शुरू की है जो पुरानी पेंशन प्रणाली और राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली दोनों की समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करती है। यह नई व्यवस्था सरकारी कर्मचारियों की दशकों की मांग का परिणाम है और पेंशन सुरक्षा के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण बदलाव का प्रतीक है। नई योजना का उद्देश्य कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति के बाद आर्थिक सुरक्षा प्रदान करना है। यह प्रणाली बाजार की अस्थिरता से होने वाले नुकसान से कर्मचारियों की रक्षा करती है। सरकार का यह निर्णय लाखों वर्तमान और भावी कर्मचारियों के जीवन को प्रभावित करने वाला है।
पुरानी पेंशन की विशेषताएं
2004 से पहले लागू पुरानी पेंशन प्रणाली में सरकारी कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति के बाद अपने अंतिम मूल वेतन का 50 प्रतिशत हिस्सा मासिक पेंशन के रूप में मिलता था। इस व्यवस्था में कर्मचारी को अपने वेतन से कोई कटौती नहीं करनी पड़ती थी और पूरी जिम्मेदारी सरकार की होती थी। पेंशन की राशि निश्चित होती थी और बाजार के उतार-चढ़ाव का कोई प्रभाव नहीं पड़ता था। यह प्रणाली कर्मचारियों के लिए पूर्ण सुरक्षा प्रदान करती थी लेकिन सरकार के लिए वित्तीय बोझ बढ़ाती जा रही थी। बढ़ती जनसंख्या और लंबी आयु के कारण पेंशन का खर्च लगातार बढ़ रहा था। इसी कारण सरकार ने वैकल्पिक व्यवस्था की तलाश शुरू की।
पेंशन प्रणाली की समस्याएं
2004 के बाद लागू की गई राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली में कर्मचारी के वेतन से नियमित कटौती की जाती थी और यह राशि शेयर बाजार में निवेश की जाती थी। इस व्यवस्था में पेंशन की राशि बाजार के प्रदर्शन पर निर्भर करती थी जिससे कर्मचारियों को अनिश्चितता का सामना करना पड़ता था। जब शेयर बाजार में गिरावट आती थी तो कर्मचारियों के पेंशन फंड का मूल्य भी कम हो जाता था। यह स्थिति विशेष रूप से उन कर्मचारियों के लिए चिंताजनक थी जो सेवानिवृत्ति के करीब थे। इस प्रणाली में पेंशन की गारंटी नहीं थी और रिटायरमेंट के बाद मिलने वाली राशि अप्रत्याशित हो सकती थी। कर्मचारी संघों ने इस व्यवस्था का लगातार विरोध किया और पुरानी पेंशन प्रणाली वापस लाने की मांग की।
2004 से पहले लागू पुरानी पेंशन प्रणाली में सरकारी कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति के बाद अपने अंतिम मूल वेतन का 50 प्रतिशत हिस्सा मासिक पेंशन के रूप में मिलता था। इस व्यवस्था में कर्मचारी को अपने वेतन से कोई कटौती नहीं करनी पड़ती थी और पूरी जिम्मेदारी सरकार की होती थी। पेंशन की राशि निश्चित होती थी और बाजार के उतार-चढ़ाव का कोई प्रभाव नहीं पड़ता था। यह प्रणाली कर्मचारियों के लिए पूर्ण सुरक्षा प्रदान करती थी लेकिन सरकार के लिए वित्तीय बोझ बढ़ाती जा रही थी। बढ़ती जनसंख्या और लंबी आयु के कारण पेंशन का खर्च लगातार बढ़ रहा था। इसी कारण सरकार ने वैकल्पिक व्यवस्था की तलाश शुरू की।
पेंशन प्रणाली की समस्याएं
2004 के बाद लागू की गई राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली में कर्मचारी के वेतन से नियमित कटौती की जाती थी और यह राशि शेयर बाजार में निवेश की जाती थी। इस व्यवस्था में पेंशन की राशि बाजार के प्रदर्शन पर निर्भर करती थी जिससे कर्मचारियों को अनिश्चितता का सामना करना पड़ता था। जब शेयर बाजार में गिरावट आती थी तो कर्मचारियों के पेंशन फंड का मूल्य भी कम हो जाता था। यह स्थिति विशेष रूप से उन कर्मचारियों के लिए चिंताजनक थी जो सेवानिवृत्ति के करीब थे। इस प्रणाली में पेंशन की गारंटी नहीं थी और रिटायरमेंट के बाद मिलने वाली राशि अप्रत्याशित हो सकती थी। कर्मचारी संघों ने इस व्यवस्था का लगातार विरोध किया और पुरानी पेंशन प्रणाली वापस लाने की मांग की।