आयकर विधेयक में बदलाव पर रिपोर्ट सदन में पेश, नए इनकम टैक्स बिल से बढ़ेगा दायरा

 आयकर विधेयक में बदलाव पर रिपोर्ट सदन में पेश, नए इनकम टैक्स बिल से बढ़ेगा दायरा
नई दिल्ली। लोक सभा समिति ने आयकर विधेयक में बदलाव पर रिपोर्ट को सदन में पेश किया है। आय कर विभाग को अगर लगता है कि किसी एक कंपनी का दूसरी कंपनी पर पर्याप्त प्रभाव है, भले ही शेयरधारिता या बोर्ड नियंत्रण से संबंधित सीमाएं लागू न हों तो प्रस्तावित नए आयकर कानून के तहत कंपनियों के बीच लेनदेन को ट्रांसफर प्राइसिंग जांच के दायरे में लाया जा सकता है। यह एक ऐसा कदम होगा जिसका कंपनी जगत पर दूरगामी प्रभाव पड़ सकता है।
लोक सभा की प्रवर समिति ने सोमवार को मसौदा आय कर विधेयक, 2025 पर अपनी रिपोर्ट सदन के पटल पर रखी। रिपोर्ट में उसने एक अहम बदलाव की अनुशंसा करते हुए ट्रांसफर प्राइसिंग का दायरा बढ़ाने की पेशकश की है। प्रवर समिति की रिपोर्ट के मुताबिक एक दूसरे पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव रखने वाली कंपनियां, अंशधारिता या बोर्ड नियंत्रण जैसी औपचारिक सीमाओं को पूरा किए बिना भी संबद्ध उपक्रम मानी जा सकती हैं और उन्हें ट्रांसफर प्राइसिंग जांच के दायरे में लाया जा सकता है।
ट्रांसफर प्राइसिंग से तात्पर्य ऐसे कर नियमों से है जो संबंधित या संबद्ध उद्यमों के बीच लेनदेन की कीमत का नियमन करते हैं। खासतौर पर सीमा पार लेनदेन का। इनका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना होता है कि उचित बाजार मूल्य सुनिश्चित हो तथा मुनाफे का हस्तांतरण रोका जा सके।
दोनों हिस्सों को निरंतरता में पढ़ा जाना चाहिए
आय कर अधिनियम 1961 संबद्ध उद्यमों/संबंधित पक्षों को दो तरह से परिभाषित करता है। पहला एक सामान्य सिद्धांत जो कहता है कि कोई उपक्रम तब संबद्ध उपक्रम माना जाएगा जबकि उसके प्रतिभागी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से किसी दूसरी कंपनी के प्रबंधन में हों या उस पर नियंत्रण अथवा उसमें पूंजी रखते हों। संबद्ध उद्यम की योग्यता के दूसरे कई पहलू भी हैं। मसलन 26 फीसदी मताधिकार, निदेशक मंडल की नियुक्ति में बहुमत, अन्य उपक्रमों पर कारोबारी निर्भरता आदि। उच्च न्यायालयों ने यह कहते हुए करदाताओं के पक्ष में निर्णय दिया है कि दोनों हिस्सों को निरंतरता में पढ़ा जाना चाहिए।
एक संबद्ध उद्यम खड़ा कर सकता है
बहरहाल, चयन समिति की रिपोर्ट ने पहले और दूसरे हिस्से को मिला दिया है और इस तरह सभी प्रावधानों को स्वतंत्र बना दिया गया है तथा संबद्ध उद्यमों का दायरा भी विस्तृत कर दिया गया है। ‘नए विधेयक की भाषा एक ऐसी स्थिति उत्पन्न करती है जहां प्रबंधन में कोई भागीदारी, पूंजी या नियंत्रण एक संबद्ध उद्यम खड़ा कर सकता है। यह व्याख्या अनचाहे परिणाम ला सकती है और इससे और अधिक वाद खड़े होंगे। विधेयक की भाषा ऐसी होनी चाहिए थी जो बताती कि किस सीमा स्तर की भागीदारी एक उद्यम को संबद्ध उद्यम बना देगी।’