ईरान और इजराइल के बीच बढ़ते तनाव के कारण कच्चे तेल की कीमतों में तेजी, देश का चालू खाते का घाटा बढ़ा
- दिल्ली राष्ट्रीय विदेश
Political Trust
- June 17, 2025
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नई दिल्ली। ईरान और इजराइल के बीच बढ़ते तनाव के कारण कच्चे तेल की कीमतों में तेजी आई है। इससे भारत का चालू खाते का घाटा (सीएडी) बढ़ने के संकेत हैं। इससे रुपये पर दबाव पड़ने की भी आशंका है। हालांकि अर्थशास्त्रियों का कहना है कि अगर कच्चे तेल की कीमतें एक दायरे में बनी रहती हैं तो वृद्धि और मुद्रास्फीति के समीकरण पर कोई खास प्रभाव नहीं पड़ेगा।
कच्चे तेल के आयात पर भारत की जरूरतें निर्भर
भारत कच्चे तेल की अपनी 85 फीसदी से अधिक जरूरतों को आयात के जरिये पूरा करता है। इसलिए वैश्विक मूल्य में उतार-चढ़ाव उसके लिए काफी मायने रखता है। मई में ब्रेंट क्रूड की कीमत हालिया 60 से 61 डॉलर प्रति बैरल के निचले स्तर से बढ़कर करीब 75 डॉलर प्रति बैरल हो गई। पेट्रोलियम मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, कच्चे तेल के इंडियन बास्केट की कीमत मई में 64 डॉलर प्रति बैरल से बढ़कर 13 जून तक 73.1 डॉलर प्रति बैरल हो गई।
सीएडी अनुमान में 30 से 40 आधार अंकों की वृद्धि
भारत पर वृहद कारकों का प्रभाव इस बात पर निर्भर करेगा कि तेल की कीमतों में आई हालिया तेजी आगे भी बरकरार रहती है या नहीं। अगर कच्चे तेल की कीमतें बढ़ती हैं और 80 डॉलर प्रति बैरल के पार पहुंचती हैं तो उसका प्रभाव वित्त वर्ष 2026 के लिए सीएडी अनुमान में 30 से 40 आधार अंकों की वृद्धि के रूप में दिख सकता है।’
अगर कच्चे तेल के इंडियन बास्केट की औसत कीमत 75 डॉलर प्रति बैरल रहती है तो चालू खाते का घाटा सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 1.1 फीसदी के अनुमान से बढ़कर 1.3 फीसदी तक हो सकता है। अगर कच्चे तेल की कीमत मार्च 2026 तक 75 डॉलर प्रति बैरल पर बनी रहती है तो सीएडी जीडीपी के 1.5 फीसदी से बढ़कर 1.7 फीसदी तक पहुंच सकता है। अनुमानों में वित्त वर्ष 2026 के लिए इंडियन बास्केट के लिए 65 से 70 डॉलर प्रति बैरल की औसत कीमत को ध्यान में रखा है जो एक साल पहले की 78.6 डॉलर प्रति बैरल औसत कीमत से कम है।
भारत कच्चे तेल की अपनी 85 फीसदी से अधिक जरूरतों को आयात के जरिये पूरा करता है। इसलिए वैश्विक मूल्य में उतार-चढ़ाव उसके लिए काफी मायने रखता है। मई में ब्रेंट क्रूड की कीमत हालिया 60 से 61 डॉलर प्रति बैरल के निचले स्तर से बढ़कर करीब 75 डॉलर प्रति बैरल हो गई। पेट्रोलियम मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, कच्चे तेल के इंडियन बास्केट की कीमत मई में 64 डॉलर प्रति बैरल से बढ़कर 13 जून तक 73.1 डॉलर प्रति बैरल हो गई।
सीएडी अनुमान में 30 से 40 आधार अंकों की वृद्धि
भारत पर वृहद कारकों का प्रभाव इस बात पर निर्भर करेगा कि तेल की कीमतों में आई हालिया तेजी आगे भी बरकरार रहती है या नहीं। अगर कच्चे तेल की कीमतें बढ़ती हैं और 80 डॉलर प्रति बैरल के पार पहुंचती हैं तो उसका प्रभाव वित्त वर्ष 2026 के लिए सीएडी अनुमान में 30 से 40 आधार अंकों की वृद्धि के रूप में दिख सकता है।’
अगर कच्चे तेल के इंडियन बास्केट की औसत कीमत 75 डॉलर प्रति बैरल रहती है तो चालू खाते का घाटा सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 1.1 फीसदी के अनुमान से बढ़कर 1.3 फीसदी तक हो सकता है। अगर कच्चे तेल की कीमत मार्च 2026 तक 75 डॉलर प्रति बैरल पर बनी रहती है तो सीएडी जीडीपी के 1.5 फीसदी से बढ़कर 1.7 फीसदी तक पहुंच सकता है। अनुमानों में वित्त वर्ष 2026 के लिए इंडियन बास्केट के लिए 65 से 70 डॉलर प्रति बैरल की औसत कीमत को ध्यान में रखा है जो एक साल पहले की 78.6 डॉलर प्रति बैरल औसत कीमत से कम है।