साहित्य अकादमी ने मनाई ‘दलित चेतना’ — रचनाओं के माध्यम से डॉ. आंबेडकर को दी भावभीनी श्रद्धांजलि

 साहित्य अकादमी ने मनाई ‘दलित चेतना’ — रचनाओं के माध्यम से डॉ. आंबेडकर को दी भावभीनी श्रद्धांजलि

दलित चेतना’ केवल एक कार्यक्रम नहीं, बल्कि एक आंदोलन की साहित्यिक अभिव्यक्ति है, जो डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर की दृष्टि और एक समानता-आधारित समाज की ओर बढ़ने का मार्ग प्रशस्त करती है।

नई दिल्ली — साहित्य अकादमी ने डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर की जयंती के अवसर पर एक विशेष कार्यक्रम “दलित चेतना” का आयोजन कर उनके विचारों, मूल्यों और सामाजिक न्याय के प्रति समर्पण को रचनात्मक अभिव्यक्ति दी। इस कार्यक्रम में छह प्रतिष्ठित लेखकोंमहेंद्र सिंह बेनीवाल, ममता जयंत, नामदेव, नीलम, पूरन सिंह और टेकचंद ने भाग लिया और अपनी कविताओं व कहानियों के माध्यम से आंबेडकरवादी सोच और दलित विमर्श को प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया।


कविताएं जो बन गईं परिवर्तन की पुकार

कार्यक्रम की शुरुआत ममता जयंत की पांच सशक्त कविताओं — ‘सभी ने छुआ था’, ‘जीवित इमारतें’, ‘ईश्वर’, ‘नहीं चाहिए’, और ‘बहेलियों के नाम’ से हुई, जिनमें जाति, पितृसत्ता और स्वतंत्रता की गूंज स्पष्ट रूप से सुनाई दी।

नामदेव ने ‘बाबा भीम’, ‘गाड़ीवान’, ‘कुआं’ और ‘पहचान’ जैसी कविताओं के माध्यम से डॉ. आंबेडकर के सपनों और आज के समाज के यथार्थ के बीच के अंतर को मार्मिक रूप में उजागर किया।

नीलम की कविताएं — ‘सबसे बुरी लड़की’, ‘नई दुनिया के रचयिता’, ‘तुम्हारी उम्मीदों पर खरे उतरेंगे हम’ और ‘उठो संघर्ष करो’ — विशेषकर महिलाओं की आवाज और सामाजिक परिवर्तन की उम्मीद लेकर आईं। कविता ‘सबसे बुरी लड़की’ ने नारी चेतना और असमानता के विरुद्ध विद्रोह की धार को दर्शकों तक पहुंचाया।

महेंद्र सिंह बेनीवाल ने ‘तस्वीर’, ‘और कब तक मारे जाओगे’, ‘भेड़िया’, ‘आग’ जैसी कविताओं में आधुनिक समाज की दोहरी मानसिकता और दलित समुदाय की जमीनी हकीकत को बड़ी संजीदगी से प्रस्तुत किया।


कहानियां जो झकझोरती हैं सोच

टेकचंद की लघु कहानी ‘गुबार’ ने दलित समुदाय के भीतर व्याप्त अज्ञानता और सामाजिक जड़ता को सरल लेकिन गहन शब्दों में सामने रखा। वहीं, पूरन सिंह की कहानी ‘हवा का रुख’ एक लेखक की आंतरिक द्वंद्व और सामाजिक दबावों के बीच समझौते की विडंबना को लेकर आई, जो हर जागरूक साहित्यकार को सोचने पर विवश करती है।


डॉ. आंबेडकर के विचारों को समर्पित सृजन की संध्या

इस सारगर्भित कार्यक्रम का संचालन साहित्य अकादमी के हिंदी संपादक श्री अनुपम तिवारी ने किया। उन्होंने कहा कि यह कार्यक्रम न केवल श्रद्धांजलि का एक माध्यम था, बल्कि विचारों की मशाल को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी भी है।

कार्यक्रम में लेखकों, पत्रकारों, छात्रों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की बड़ी उपस्थिति रही। सभी ने एक स्वर में कहा कि ऐसे आयोजन साहित्य के माध्यम से सामाजिक बदलाव लाने की शक्ति को पुनः स्थापित करते हैं।

‘दलित चेतना’ केवल एक कार्यक्रम नहीं, बल्कि एक आंदोलन की साहित्यिक अभिव्यक्ति है, जो डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर की दृष्टि और एक समानता-आधारित समाज की ओर बढ़ने का मार्ग प्रशस्त करती है।