पत्रकारिता जगत मे भीष्म पितामह के नाम से सु-विख्यात प्रो.(डॉ.)रामजीलाल जांगिड का शिष्य को शब्द तोहफा

 पत्रकारिता जगत मे भीष्म पितामह के नाम से सु-विख्यात प्रो.(डॉ.)रामजीलाल जांगिड का शिष्य को शब्द तोहफा

सी एम पपनैं

पत्रकारिता जगत मे भीष्म पितामह के नाम से सु-विख्यात, भारतीय भाषा पत्रकारिता विभाग तथा भारतीय जन-संचार संस्थान, भारत सरकार, नई दिल्ली के सेवानिवृत पाठ्य क्रम निदेशक, प्रो. (डॉ.)रामजीलाल जांगिड किसी परिचय के मोहताज नहीं रहे हैं। विगत कई दशको से देश के लगभग बडे प्रिंट, इलैक्ट्रोनिक व मीडिया संस्थानों मे कार्यरत शिष्यो के ये प्रेरणास्रोत गुरु रहें है।

भाषाई पत्रकारिता को शिखर पर चढ़ा कर अनमोल कार्य करने वाले प्रो.(डॉ.)रामजीलाल जांगिड द्वारा वर्ष १९७९ में भारतीय जनसंचार संस्थान, नई दिल्ली में भारतीय भाषा पत्रकारिता विभाग की स्थापना की थी। पूरे देश में ये अपनी तरह का पहला और अनोखा भाषायी पत्रकारिता प्रयास था। वर्ष १९८० से १९८७ तक इसमें हिंदी, उर्दू, गुजराती, मराठी और ओड़िया अर्थात पांच भारतीय भाषाओं में पत्रकारिता तथा जनसंचार के उपेक्षित रहे पक्षों की नई दिल्ली, जयपुर, वाराणसी, भावनगर, अहमदाबाद, औरंगाबाद, भुवनेश्वर और नागपुर में शिक्षा दी गई। इससे गांव और कस्बों की युवतियों और युवकों को पत्रकारिता के क्षेत्र मे नई दिशा मिली। उक्त आयोजनों से प्रो.(डॉ.)रामजीलाल जांगिड उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिसा, गुजरात और दिल्ली के युवा पत्रकारों को एशिया के सर्वश्रेष्ठ मीडिया शिक्षा केंद्र से जोड़ सके। इन राज्यों के सैकड़ों युवा पत्रकारों को रोजगार व अपने-अपने क्षेत्रों में विशेष पहचान दिलवाने मे मुख्य भूमिका का निर्वाह किया है।

वर्तमान मे प्रो.(डॉ.)रामजीलाल जांगिड ‘जिनकी चर्चा है’ नाम से अपने सिद्धहस्त पत्रकार शिष्यो के बावत अपनी निष्पक्ष मनोभावना से कलम चला कर पत्रकारिता के क्षेत्र मे उनके किए कार्यो का लेखा-जोखा प्रस्तुत कर रहे हैं।

वरिष्ठ पत्रकार दयानंद वत्स की 42 वर्षीय पत्रकारीय यात्रा अनवरत जारी है शीर्षक से प्रो.(डॉ.)रामजीलाल जांगिड ने लिखा है-
“दिल्ली के ठेठ ग्रामीण परिवेश के बरवाला गांव से अस्सी के दशक में जब पहली बार कोई युवा छात्र पत्रकारिता की शिक्षा के लिए देश के सर्वोच्च संस्थान आई.आई.एम.सी में मेरे पास आया तो उसमें मुझे भविष्य की संभावनाएं दिखीं। दयानंद वत्स ने पत्रकारिता की शिक्षा भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली के भारतीय भाषा पत्रकारिता विभाग द्वारा 2 से 13 मई 1981 तक आयोजित ग्रामोन्मुख पत्रकारिता पुनश्चर्या पाठ्यक्रम में ली थी।

26जून से 9 जुलाई 1984 तक उसने हिंदी पत्रकारिता पुनश्चर्या पाठ्यक्रम में अपनी जानकारी पुष्ट की। वर्ष 1985 में उसने पत्राचार से राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर का स्नातकोत्तर पत्रकारिता डिप्लोमा पाठ्यक्रम द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण किया। 6 से 17 जनवरी 1986 तक उसने विज्ञापन एवं जनसंपर्क पाठ्यक्रम पूरा किया। वर्ष 1986 में उसे तीस वर्ष की आयु में ही ग्रामोन्मुख पत्रकारिता के लिए उसके जीवन का सबसे पहला ‘मैत्री मंच’ पुरस्कार मिल गया। तत्कालीन केंद्रीय मंत्री श्री के.सी पंत के हाथों उसे यह पुरस्कार मिला। वर्ष 1992 में उसने हिंदी मासिक समाचार पत्र नेशनल मीडिया नेटवर्क स्थापित किया और उसके संस्थापक प्रधान संपादक का दायित्व संभाला।

दिसंबर1992 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ.शंकरदयाल शर्मा ने राष्ट्रपति भवन में उसका लोकार्पण किया था। उसने वर्ष 1981 से 1986 तक पत्रकारिता और जनसंचार के तीनों पाठ्यक्रम मेरी देख-रेख में पूरे किए थे। बाद में उसने समाचार पत्रों में संपादक के नाम पत्र लिखने वाले पत्र लेखकों का एक रजिस्टर्ड संगठन ‘राजधानी स्वतंत्र पत्र लेखक मंच’ नाम से स्थापित किया। तदुपरांत उसने भारत के स्वतंत्र पत्रकारों और लेखकों के लिए ‘अखिल भारतीय स्वतंत्र पत्रकार एवं लेखक संघ’ (रजि) स्थापित किया।

वह धुन का धनी परिश्रमी और संस्कारी है। 42 वर्षों की उसकी पत्रकारीय यात्रा ने उसे व्यापक दृष्टि दी है। दयानंद वत्स दिल्ली के बरवाला गांव का रहने वाला है। उसकी प्रारंभिक शिक्षा गांव के ही नगर निगम विद्यालय में हुई। उसने 1976 में दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित हंसराज कॉलेज से बी.ए हिंदी ऑनर्स और 1979 में डी.यू से ही हिंदी में एम.ए किया।

दयानंद वत्स ने राष्ट्रीय स्तर पर डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन मेमोरियल नेशनल टीचर अवार्ड और नेशनल मीडिया नेटवर्क अवार्ड की स्थापना की। वह पिछले 38 वर्षों से हर वर्ष 5 सितंबर को ‘शिक्षक दिवस’ के अवसर पर इस कार्यक्रम को आयोजित करता है। अब तक वह हजारों शिक्षकों और पत्रकारों को सम्मानित कर चुका है। पिछले 42 वर्षों में उसके लिखे हजारों संपादक के नाम पत्र और सम-सामयिक लेख और प्रेस विज्ञप्तियां नियमित रुप से देश के सभी राष्ट्रीय समाचार पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं और यह सिलसिला अब तक जारी है।”

दयानंद वत्स की विगत दशकों की पत्रकारिता की विशेषता को पॉलिटिकल ट्रस्ट के इस लेख के संवाददाता ने भी नजदीक से देखा, समझा और परख कर अपनी राय व्यक्त की है।

सामाजिक, सांस्कृतिक व राजनैतिक जिम्मेदारिया निभाने व जनमानस के मध्य चेतना जगाने के लिए ही भारत में पत्रकारिता का जन्म हुआ था,
दयानंद वत्स की पत्रकारिता इसमे खरी उतरती नजर आयी है। जो खूबियां अभी भी निरंतर बनी हुई देखी जा सकती हैं। पत्रकारिता के साथ-साथ सामाजिक व शैक्षिक क्षेत्र मे भी दयानंद वत्स के द्वारा निष्पादित कार्यो का प्रभाव सिर्फ दिल्ली एनसीआर तक ही सीमित नहीं रहा है, देश के कई अन्य राज्यो तक व्यापक प्रभाव देखा जा सकता है।

पत्रकारिता के मूल उद्देश्यो से हट कर, स्वयं का लाभ उठाने वाले पत्रकारों से दयानंद वत्स ने अपने पत्रकारीय जीवन मे सदा दूरी बना कर रखी। मीडिया संस्थानों में मनमानी व शोषण के वे सदा खिलाफ रहे हैं। समाजिकता की परवाह किए बगैर, राजनैतिक सांठ-गांठ के बल, शक्तिशाली बनने की चाह उनकी कभी नहीं देखी गई है। बेहद सतही, हल्की और निरर्थक खबरों से हट कर देश और समाज के वास्तविक मुद्दों पर ही वत्स जी ने अपनी खबरों को फोकस कर पत्रकारिता का दायित्व सदा निभाया है। पीड़ितों की तकलीफ को सदा खबरों में महत्व दिया है।

चार दशको की पत्रकारिता मे दयानंद वत्स ने भली भांति समझा है, एक जिम्मेदार मीडिया का स्थान, उसकी भूमिका और उसके चौथे स्तंभ होने से है। मीडिया का काम अन्याय से लड़ना और सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनैतिक रूप से लोगों के प्रति जिम्मेदार होना है, न कि किसी का पिट्ठू बन कर रहना। वर्तमान में जैसे-जैसे सामाजिक व राजनैतिक चेतना देश मे बढती जा रही है, वैसे-वैसे मीडिया की भूमिका और उसके स्तर पर जो सवाल उठ रहे हैं, लिखने की आजादी पर जो सवाल उठ रहे हैं इस सबसे दयानंद वत्स भी चिंतित रहे हैं।

पत्रकारिता अपनी शक्ति लोगों से ही पा सकती है और यह लोगों की जानकारी और अभिव्यक्ति के अधिकार को पूरा करने और उसका प्रतिनिधि होकर ही मिल सकती है, इस तथ्य से दयानंद वत्स सदा परिचित रहे हैं, सदा जनमानस के मध्य मौजूद रह कर ही उन्होंने पत्रकारिता का दायित्व निभाया है।

सामाजिक व राजनैतिक चेतना वाले लोकतांत्रिक देश के जनमानस के मनोभावो को गहराई से समझ कर तथा देश मे कानून के राज की क्या दशा व दिशा चलायमान है और बिना लोकतंत्र के क्या स्वतंत्र पत्रकारिता हो सकती है? इस सब का गहरा ज्ञान दयानंद वत्स को रहा है।

दयानंद वत्स का मानना रहा है, निर्भीक व निष्पक्ष पत्रकारिता करने के लिए, साहस बटोरना जरूरी है। लगातार लडाई लड कर ही, पत्रकारिता की साख बचाई, महत्व बढ़ाया व धर्म निभाया जा सकता है। मीडिया का स्वतंत्र विचारों व मूल्यधर्मी होना जरूरी है। पत्रकारिता लोकहित मे काम करने की जो जगह देती है, उसका सदुपयोग कर ही लोकतंत्र के इस चौथे स्तंभ की साख बचाई जा सकती है।