एक्सप्लोसिव से भरी 32 गाड़ियों का होना था इस्तेमाल, टेररिज़्म कब तक बहाएगा इस्तेमाल?
- दिल्ली राष्ट्रीय
Political Trust
- November 24, 2025
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नई दिल्ली। पिछले दिनों हुए बम धमाके में दिल्ली एक बार फिर कांप उठी। डर और दहशत की वो लहर, जिसके लिए 1990 और 2000-10 के दशक याद किए जाते हैं, एक बार फिर इस शहर की रगों में दौड़ गई, जो भारत का दिल है। दिल्ली की नसों में एक बार फिर वही बेचैनी और अनिश्चितता का साया है जो बीते दिनों की याद बन गई थी। जिसकी तबाही को शहर भूलने की कोशिश कर रहा था। हर किसी का दिल और दिमाग यह सोचकर बेकाबू हो गया है कि अगर 10 नवंबर को लाल किला मेट्रो स्टेशन पर हुआ धमाका उन सभी जगहों पर होता जिन्हें टारगेट किया गया था, तो क्या होता। जांच एजेंसियों और मीडिया के लिए यह रिपोर्ट करना बहुत डरावना और सनसनीखेज है कि एक पुरानी कार में धमाका, जिसने राष्ट्रीय राजधानी के एक हाई-अलर्ट इलाके में एक दर्जन से ज़्यादा लोगों की जान ले ली और कई को घायल कर दिया, उसके मास्टर चार शहरों में कई जगहों पर उसी ताकत के ऐसे ही जानलेवा हमलों की प्लानिंग कर रहे थे। इसके लिए एक्सप्लोसिव से भरी 32 गाड़ियों का इस्तेमाल होना था। लेकिन इससे भी ज़्यादा चिंता की बात यह है कि धमाके में अपनी कार के साथ मारा गया नौजवान एक डॉक्टर था। इसके अलावा, कई डॉक्टरों, एक्सप्लोसिव बनाने के एक्सपर्ट्स, साइंटिस्ट्स, प्रोफेशनल्स और बहुत पढ़े-लिखे युवाओं ने मिलकर यह प्लान बनाया था। इन रिपोर्ट्स और दावों पर अलग-अलग नज़रिए से चर्चा हो सकती है, और इस श्राप के पीछे के असली खेल के बारे में बातचीत हो सकती है। लेकिन यह कभी बहस का विषय नहीं हो सकता कि आतंकवाद इंसानी शरीर का कैंसर (घाव/अल्सर) है। यह एक ऐसा श्राप है जो पहले इंसानियत की रूह को मारता है, और फिर लोगों की जान ले लेता है। लेकिन असली सवाल यह है कि यह कैंसर कब तक खून बहाता रहेगा, और क्या इसका कोई इलाज है।
