सुप्रीम कोर्ट का फैसला: पारित विधेयकों पर अनुमोदन देने के लिए न्यायपालिका कोई समयसीमा तय नहीं कर सकती
- दिल्ली राष्ट्रीय
Political Trust
- November 20, 2025
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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने आज गुरुवार को राष्ट्रपति के उस संदर्भ पर अपना फैसला सुनाया है, जिसमें पूछा गया था कि क्या कोई सांविधानिक अदालत, राज्य विधानसभाओं से पारित विधेयकों को मंजूरी देने के लिए राज्यपालों और राष्ट्रपति के लिए समय-सीमा तय कर सकती है। इस मामले में मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस एएस चंदुरकर की संविधान पीठ ने 10 दिनों तक दलीलें सुनीं और 11 सितंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि राष्ट्रपति और राज्यपाल को राज्य विधानसभा से पारित विधेयकों पर अनुमोदन देने के लिए न्यायपालिका कोई समयसीमा तय नहीं कर सकती। मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की अगुवाई वाली संविधान पीठ ने राष्ट्रपति की तरफ से अनुच्छेद 143 के तहत भेजे गए 14 संवैधानिक प्रश्नों पर अपनी राय देते हुए कहा कि यह विषय संवैधानिक पदाधिकारियों के विवेक और संघीय ढांचे की मर्यादा से जुड़ा है। अदालत ने माना कि विधायी प्रक्रिया में राष्ट्रपति और राज्यपाल की भूमिका ‘संवैधानिक कर्तव्य’ है, पर न्यायिक हस्तक्षेप के जरिए इसकी समय सीमा तय नहीं की जा सकती। इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी रेखांकित किया कि अत्यधिक देरी लोकतांत्रिक शासन की आत्मा को क्षति पहुंचाती है, इसलिए इन पदों से अपेक्षा है कि वे उचित समय के भीतर निर्णय लें।
