यूपी के विजन को बिहार से मिली आक्सीजन, नई पीढ़ी बदलेगी सियासत का रंग
- उत्तर प्रदेश राजनीति राष्ट्रीय
Political Trust
- November 15, 2025
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लखनऊ। बिहार की जनता ने पीएम मोदी और नीतीश कुमार के नेतृत्व में एक बार फिर विश्वास जताया है। बिहार में सभी सीटों के नतीजे आ गए हैं। भाजपा 89 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी है। महागठबंधन को कुल 35 सीटें मिली हैं। बिहार में यूपी विजन को ‘ऑक्सीजन’ मिली है। बिहार चुनाव में यूपी के विकास मॉडल के साथ ही कानून-व्यवस्था की भी खूब चर्चा हुई।
बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा नीति राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठनबंधन (एनडीए) को मिली अप्रत्याशित सफलता से सिर्फ बिहार ही नही, बल्कि यूपी की सियासत को भी प्रभावित करेगा।
हालांकि बिहार के मुद्दे और जनता का मिजाज यूपी के सियासी समीकरणों से थोड़ा अलग है, फिर वहां के चुनाव परिणाम ने साफ कर दिया है कि अब आगे चुनाव चाहे जिस भी प्रदेश में होगा, वहां भी ध्रुवीकरण की राजनीति के बजाय विकास और सुशासन के मुद्दे ही परिणाम तय करेंगे।
इस लिहाज से सबसे अधिक प्रभाव यूपी के सियासत पर भी पड़ेगा। नतीजों के जरिये बिहार ने यूपी की भाजपा सरकार के विजन को एक तरह से ” ऑक्सीजन ” देने का भी काम किया है।
दरअसल बिहार चुनाव में भाजपा ने अपनी चुनावी रणनीति में धर्म, जाति, मजहब और ध्रुवीकरण के मुद्दे को तवज्जों देने के बजाए, यूपी की तर्ज पर विकास, सुशासन और माफिया विरोधी अभियान के आधार पर बिहार को भी सजाने-संवारने का राग छेड़ा था।
यूपी के विकास मॉडल के साथ ही कानून-व्यवस्था की खूब चर्चा
बिहार में चुनाव प्रचार करने वाले भाजपा नेताओं भी अपने-अपने भाषणों में यूपी के विकास मॉडल के साथ ही कानून-व्यवस्था की खूब चर्चा की। वहीं, लालू राज में जंगलराज की भी याद दिलाई। भाजपा नेताओं ने राजद पर कट्टा और माफिया को संरक्षण देने की याद दिलाकर भी जनता को जगाने का काम किया था।
भाजपा यूपी के सियासी मैदान में भी इसी रणनीति के आधार पर उतरेगी
माना जा रहा है कि अगले साल पश्चिम बंगाल और 2027 में यूपी होने वाले विधानसभा चुनाव के रिहर्सल के तौर पर बिहार चुनाव में भाजपा ने अपनी चुनावी जाति-पाति की रणनीति बदलकर एक तरह से टेस्ट किया है। चूंकि इस टेस्ट में भाजपा गठबंधन पास हो गया है, इसलिए माना जा रहा है कि भाजपा यूपी के सियासी मैदान में भी इसी रणनीति के आधार पर उतरेगी।
भाजपा ने जिस तरीके से इस बार बिहार में महिला और युवाओं के कल्याण के मुद्दे को लेकर चुनावी समर में उतरी तो मतदाताओं ने भी उसे हाथों-हाथ लिया और जनता का का भरोसा जीतने में एनडीए कामयाब रही।
मोदी-नीतीश, योगी राज, मंदिर, महिला, माफिया के इर्द-गिर्द हुए बिहार चुनाव के नतीजों ने यह भी साफ कर दिया है कि जीत के लिए सुशासन, शासन की कल्याणकारी योजनाओं के सुगमता के साथ जनता के बीच पहुंचाने की प्राथमिकता, गठबंधन में पार्टियों और उनके नेताओं की एकजुटता तथा जिताऊ उम्मीदवारों को प्राथमिकता जरूरी है।
नई पीढ़ी ने बदला सियासत का रंग
नई पीढ़ी की पसंद से बदली बिहार की सियासत का रंग निश्चित रूप से यूपी में भी भाजपा को 27 के विधानसभा चुनाव के लिए जमीन तैयार करने में मदद करेंगे। ऐसा भी नही है कि इन परिणामों में सिर्फ विपक्ष के लिए ही नहीं, बल्कि बिहार चुनाव के नजीजों में सत्तारूढ़ दल भाजपा के लिए भी कुछ सबक छिपे दिख रहे हैं।
बिहार चुनाव प्रचार के दौरान यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की जबरदस्त मांग, उनकी सभाओं में कई जगह बुलडोजर के साथ लोगों का जुटना और खुद योगी का बिहार के दुर्दांत अपराधी रहे शहाबुद्दीन के सिवान क्षेत्र में कानून-व्यवस्था के मुद्दे पर दहाड़ तथा बिहार में कई जगह यूपी की बेहतर कानून-व्यवस्था को लेकर जनता के बीच से उठने वाली आवाज के बीच नीतीश की सुशासन बाबू की छवि का असर दिखा।
दरअसल पीएम नरेन्द्र मोदी, अमित शाह, राजनाथ सिंह सरीखे बड़े नेताओं के अलावा कानून-व्यवस्था का मॉडल बनकर उभरे यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सभाओं ने संभवतः जनता को ‘सुशासन बाबू’ के सुशासन को लेकर ज्यादा आश्वस्त किया।
इसका ही असर माना जाएगा कि एमवाई समीकरण के बावजूद लगभग 14 प्रतिशत यादव जनसंख्या वाले राज्य में तेजस्वी यादव की पार्टी राजद की बुरी हार बताती है कि इस चुनाव में बिहार में मतदाताओं ने जात-पांत की दीवारें तोड़कर वोट दिया है। यह संकेत यूपी में न सिर्फ विपक्ष को अपनी राजनीति और राजनीतिक मुद्दों को लेकर सचेत करने वाला है, बल्कि भाजपा को भी यह संदेश दे रहे हैं कि लगभग बिहार जितनी ही यादव आबादी वाले उत्तर प्रदेश में वे अगर इनको जोड़ने के लिए काम करें तो इनका वोट भी उनके पक्ष में आ सकता है।
बिहार चुनाव में भाजपा के लिए एक उत्साहजनक संकेत यह भी रहा कि मुस्लिम और यादव (एमवाई) वर्ग लोगों ने इस चुनाव में भाजपा से दूरी बनाते हुए भी तमाम सीटों पर जदयू का समर्थन किया है। तभी तो कई यादव और मुस्मिल बहुल सीटों पर एनडीए को जीत मिली है। इन संदर्भों को ध्यान में रखकर भाजपा को यूपी में 27 के लिए ताना-बाना बुनना होगा।
हालांकि बिहार के मुद्दे और जनता का मिजाज यूपी के सियासी समीकरणों से थोड़ा अलग है, फिर वहां के चुनाव परिणाम ने साफ कर दिया है कि अब आगे चुनाव चाहे जिस भी प्रदेश में होगा, वहां भी ध्रुवीकरण की राजनीति के बजाय विकास और सुशासन के मुद्दे ही परिणाम तय करेंगे।
इस लिहाज से सबसे अधिक प्रभाव यूपी के सियासत पर भी पड़ेगा। नतीजों के जरिये बिहार ने यूपी की भाजपा सरकार के विजन को एक तरह से ” ऑक्सीजन ” देने का भी काम किया है।
दरअसल बिहार चुनाव में भाजपा ने अपनी चुनावी रणनीति में धर्म, जाति, मजहब और ध्रुवीकरण के मुद्दे को तवज्जों देने के बजाए, यूपी की तर्ज पर विकास, सुशासन और माफिया विरोधी अभियान के आधार पर बिहार को भी सजाने-संवारने का राग छेड़ा था।
यूपी के विकास मॉडल के साथ ही कानून-व्यवस्था की खूब चर्चा
बिहार में चुनाव प्रचार करने वाले भाजपा नेताओं भी अपने-अपने भाषणों में यूपी के विकास मॉडल के साथ ही कानून-व्यवस्था की खूब चर्चा की। वहीं, लालू राज में जंगलराज की भी याद दिलाई। भाजपा नेताओं ने राजद पर कट्टा और माफिया को संरक्षण देने की याद दिलाकर भी जनता को जगाने का काम किया था।
भाजपा यूपी के सियासी मैदान में भी इसी रणनीति के आधार पर उतरेगी
माना जा रहा है कि अगले साल पश्चिम बंगाल और 2027 में यूपी होने वाले विधानसभा चुनाव के रिहर्सल के तौर पर बिहार चुनाव में भाजपा ने अपनी चुनावी जाति-पाति की रणनीति बदलकर एक तरह से टेस्ट किया है। चूंकि इस टेस्ट में भाजपा गठबंधन पास हो गया है, इसलिए माना जा रहा है कि भाजपा यूपी के सियासी मैदान में भी इसी रणनीति के आधार पर उतरेगी।
भाजपा ने जिस तरीके से इस बार बिहार में महिला और युवाओं के कल्याण के मुद्दे को लेकर चुनावी समर में उतरी तो मतदाताओं ने भी उसे हाथों-हाथ लिया और जनता का का भरोसा जीतने में एनडीए कामयाब रही।
मोदी-नीतीश, योगी राज, मंदिर, महिला, माफिया के इर्द-गिर्द हुए बिहार चुनाव के नतीजों ने यह भी साफ कर दिया है कि जीत के लिए सुशासन, शासन की कल्याणकारी योजनाओं के सुगमता के साथ जनता के बीच पहुंचाने की प्राथमिकता, गठबंधन में पार्टियों और उनके नेताओं की एकजुटता तथा जिताऊ उम्मीदवारों को प्राथमिकता जरूरी है।
नई पीढ़ी ने बदला सियासत का रंग
नई पीढ़ी की पसंद से बदली बिहार की सियासत का रंग निश्चित रूप से यूपी में भी भाजपा को 27 के विधानसभा चुनाव के लिए जमीन तैयार करने में मदद करेंगे। ऐसा भी नही है कि इन परिणामों में सिर्फ विपक्ष के लिए ही नहीं, बल्कि बिहार चुनाव के नजीजों में सत्तारूढ़ दल भाजपा के लिए भी कुछ सबक छिपे दिख रहे हैं।
बिहार चुनाव प्रचार के दौरान यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की जबरदस्त मांग, उनकी सभाओं में कई जगह बुलडोजर के साथ लोगों का जुटना और खुद योगी का बिहार के दुर्दांत अपराधी रहे शहाबुद्दीन के सिवान क्षेत्र में कानून-व्यवस्था के मुद्दे पर दहाड़ तथा बिहार में कई जगह यूपी की बेहतर कानून-व्यवस्था को लेकर जनता के बीच से उठने वाली आवाज के बीच नीतीश की सुशासन बाबू की छवि का असर दिखा।
दरअसल पीएम नरेन्द्र मोदी, अमित शाह, राजनाथ सिंह सरीखे बड़े नेताओं के अलावा कानून-व्यवस्था का मॉडल बनकर उभरे यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सभाओं ने संभवतः जनता को ‘सुशासन बाबू’ के सुशासन को लेकर ज्यादा आश्वस्त किया।
इसका ही असर माना जाएगा कि एमवाई समीकरण के बावजूद लगभग 14 प्रतिशत यादव जनसंख्या वाले राज्य में तेजस्वी यादव की पार्टी राजद की बुरी हार बताती है कि इस चुनाव में बिहार में मतदाताओं ने जात-पांत की दीवारें तोड़कर वोट दिया है। यह संकेत यूपी में न सिर्फ विपक्ष को अपनी राजनीति और राजनीतिक मुद्दों को लेकर सचेत करने वाला है, बल्कि भाजपा को भी यह संदेश दे रहे हैं कि लगभग बिहार जितनी ही यादव आबादी वाले उत्तर प्रदेश में वे अगर इनको जोड़ने के लिए काम करें तो इनका वोट भी उनके पक्ष में आ सकता है।
बिहार चुनाव में भाजपा के लिए एक उत्साहजनक संकेत यह भी रहा कि मुस्लिम और यादव (एमवाई) वर्ग लोगों ने इस चुनाव में भाजपा से दूरी बनाते हुए भी तमाम सीटों पर जदयू का समर्थन किया है। तभी तो कई यादव और मुस्मिल बहुल सीटों पर एनडीए को जीत मिली है। इन संदर्भों को ध्यान में रखकर भाजपा को यूपी में 27 के लिए ताना-बाना बुनना होगा।
