चातुर्मास में भूलकर भी ना करें ये काम, जीवन में आ सकती है बाधाएं? जानिए इससे जुड़े नियम

 चातुर्मास में भूलकर भी ना करें ये काम, जीवन में आ सकती है बाधाएं? जानिए इससे जुड़े नियम
नई दिल्ली। देवशयनी एकादशी से चतुर्मास की शुरुआत होती है, जिसमें कई मांगलिक कार्यों पर विराम लग जाता है। यदि आप इन महीनों में कुछ विशेष कार्य करना चाहते हैं, तो शास्त्रीय नियमों और सावधानियों का पालन करना ज़रूरी है, नहीं तो जीवन में बाधाएं आ सकती हैं।
 हिंदू धर्म में चतुर्मास की शुरुआत हर साल आषाढ़ मास की देवशयनी एकादशी से होती है, जब भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं। इस अवधि में विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन जैसे मांगलिक कार्यों पर रोक लग जाती है, क्योंकि इसे धार्मिक दृष्टि से शुभ नहीं माना जाता। चतुर्मास को साधना, तप और संयम का समय माना गया है।
वर्ष 2025 में यह पवित्र अवधि 6 जुलाई को देवशयनी एकादशी से शुरू होगी और 1 नवंबर को देवउठनी एकादशी पर समाप्त होगी। हालांकि इस दौरान कुछ खास कार्य किए जा सकते हैं, लेकिन इन्हें करते समय शास्त्रों में बताए गए नियमों और सावधानियों का पालन करना आवश्यक होता है, ताकि पुण्यफल बना रहे और किसी दोष का भय न हो।
चातुर्मास में कार्य  ये करें
चातुर्मास के दौरान भगवान विष्णु, शिव जी और अन्य देवी-देवताओं की आराधना विशेष फल देती है। आप नियमित रूप से मंत्र जाप, कथा-श्रवण और पूजा कर सकते हैं। यह समय भगवान की कृपा पाने के लिए आदर्श माना जाता है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, चातुर्मास में तीर्थ स्थलों की यात्रा करना और पवित्र नदियों में स्नान करना शुभ होता है। इससे पापों का क्षय होता है और आत्मा की शुद्धि मानी जाती है। घर में या मंदिरों में हवन-पूजन जैसे कर्मकांड करने से सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है। यह समय यज्ञ आदि के लिए भी अनुकूल है। जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र, दवाइयां या धन देना अत्यंत पुण्यकारी होता है। भोजन कराना या अनाज दान करना विशेष रूप से शुभ माना गया है। तुलसी, पीपल, आंवला जैसे धार्मिक और औषधीय पौधे इस अवधि में लगाने से शुभ फल मिलता है। इन्हें लगाने से पर्यावरण के साथ-साथ आध्यात्मिक उन्नति भी होती है। भगवद गीता, रामायण, भागवत, पुराण आदि धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन इस समय अत्यधिक लाभकारी होता है। इससे मन की एकाग्रता बढ़ती है और जीवन की दिशा स्पष्ट होती है। आत्म-शुद्धि और मानसिक शांति के लिए ध्यान और प्राणायाम करें। यह मन को स्थिर करता है और आत्मिक जागरूकता को बढ़ाता है।